Category: संस्मरण

ममता की मूर्ति थी सावित्रीबाई फुले

Post Views: 8  सावित्रीबाई फुले का जीवन ममता का पर्याय है। जोतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले ने शिक्षा के लिए दूर दूर से आने वाले  विद्यार्थियों के लिए अपने घर

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एक शांत नास्तिक संत प्रेमचंद : जैनेंद्र कुमार

Post Views: 56 संस्मरण मुझे एक अफसोस है, वह अफसोस यह है कि मैं उन्हें पूरे अर्थों में शहीद क्यों नहीं कह पाता हूँ, मरते सभी हैं, यहां बचना किसको

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डॉक्टर आंबेडकर से मेरी भेंट – -सन्तराम बी.ए.

Post Views: 66 किसी विद्वान का व्याख्यान सुनने से या उसकी पुस्तक पढ़ने से जितना फायदा होता है उससे कहीं ज्यादा उस के सत्संग से होता है इसलिए हमारे यहां

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पथ की साथी सुभद्राकुमारी चौहान – महादेवी वर्मा

Post Views: 531 हमारे शैशवकालीन अतीत और प्रत्यक्ष वर्तमान के बीच में समय- प्रवाह का पाठ ज्यों-ज्यों चौड़ा होता जाता है त्यों-त्यों हमारी स्मृति में अनजाने ही एक परिवर्तन लक्षित

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मुक्तिबोध : एक संस्मरण – हरिशंकर परसाई

Post Views: 36 भोपाल के हमीदिया अस्पताल में मुक्तिबोध जब मौत से जूझ रहे थे, तब उस छटपटाहट को देखकर मोहम्मद अली ताज ने कहा था – उम्र भर जी के भी न जीने का अन्दाज आयाजिन्दगी छोड़ दे पीछा मेरा मैं बाज आया जो मुक्तिबोध

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प्रसाद : जैसा मैंने पाया – अमृतलाल नागर

Post Views: 27 प्रसादजी से मेरा केवल बौद्धिक संबंध ही नहीं, हृदय का नाता भी जुड़ा हुआ है। महा‍कवि के चरणों में बैठकर साहित्‍य के संस्‍कार भी पाए हैं और

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पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ- नामवर सिंह

इन पोथियों का मूल्य उन पर लिखी कीमत में नहीं, दुकानदार की आँखों में नहीं, मेरी डिग्रियों में नहीं, अध्यापक के वेतन में नहीं। उस कोटि-कोटि जनता के हृदय में है, उसकी आँखों में है, उसके हाथों में है। (लेख से ) … Continue readingपोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ- नामवर सिंह

यादों के आइने में भगतसिंह और उनके साथी – यशपाल

Post Views: 655 मैं यह कहानी व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर लिख रहा हूं। भगत सिंह, सुखदेव और मैं कालिज के सहपाठी थे। भगवतीचरण हम लोगों से दो बरस आगे

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प्रदीप कासनी – सरबजीत : एक दोस्त एक अदीब

Post Views: 356 आखिर दिसम्बर ‘98 का यह दिन आना ही था। दक दुर्निवार खिंच से आबद्ध कवि सधे कदमों से उस पाले को लांघ गया, जहां हम सब स्तब्ध

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और सफर तय करना था अभी तो, सरबजीत! – ओमप्रकाश करुणेश

Post Views: 210 ओम प्रकाश करुणेश  (कथाकर व आलोचक सरबजीत की असामयिक मृत्यु पर लिखा गया संस्मरण) सरबजीत के साथ पहली मुलाकात ठीक ठाक से तो याद नहीं, पर खुली-आत्मीय भरी

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