अमनदीप वशिष्ठ
गोगा जी कौन थे? जिनकी गाथा गांव-गांव आज भी गाई जाती है। आज के वक्त में, जबकि जातीय संघर्ष उबल रहे हैं, साम्प्रदायिकता उफान पर है। ऐसे में साहित्य,मनोविज्ञान,इतिहास या फिर समाजशास्त्र में रूचि रखने वालों को गोगा-कथा से क्या प्राप्त होगा?
गोगा जी की कहानी सिर्फ एक कहानी नहीं है। इस कहानी में हरियाणा-राजस्थान की संस्कृति और समाज के रोचक पहलू छिपे हुए हैँ। गोगा जी की कहानी दरअसल एक मॉडल है। एक ऐसा मॉडल या यूं कहें कि एक तरीका है जिससे हम अपने समाज के लोगों के मन में उतर सकते हैं। उनके सपने, उनकी खुशियां, उनके तौर-तरीके, उनका बीता हुआ कल और उनकी जरूरतों को समझ सकते हैं।
आम बोलचाल की भाषा में गोगा को गूगा या ‘गूग्गा’ बोला जाता हे। ‘गूगा पीर’ के नाम से जाने गए राजा जाहर वीर चौहान की याद में हर साल ‘गूगा नवमी’ का त्यौहार मनाया जाता है। देसी कैलेंडर के मुताबिक भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की नवमी को, यानी कृष्ण जन्माष्टमी के ठीक अगले दिन। राजस्थान में ‘गोगामेड़ी’ पर भारी मेला लगता है। गोगामेड़ी वो जगह है, जहां ये माना जाता है कि गोगाजी अपने घोड़े के साथ जमीन में समा गए थे। इससे पहले कि आगे कोई बात हो, वैज्ञानिक चित्त का कोई भी आदमी एकदम सवाल उठाएगा कि ये ‘जमीन में समा जाना’ कोई ऐतिहासिक तथ्य नहीं हो सकता। निश्चित ही कोई जीवित आदमी एक जिंदा घोड़े के साथ धरती में नहीं समा सकता। पर ये तो लोकगाथा की एक ख़्ाासियत है कि उसमें ‘चमत्कार’ और ‘ऐतिहासिक सच’ घुले मिले रहते हैं। हमारा जो पूरा वजूद है, उसमें तर्क के साथ स्वप्न भी होते हैं और उन सपनों की एक अलग भाषा होती है। समाज में व्याप्त लोक चेतना अलग भाषा गढ़ती है।
गोगा की कथा में गोगाजी दिल्ली के सुल्तान से लड़ते मिलेंगे। पर वो दिल्ली का सुल्तान मोहम्मद गौरी है या महमूद गजनवी या तुगलक, इसकी कोई जानकारी नहीं मिलेगी। मिथक लोकगाथा का एक केंद्रीय हिस्सा है। लोकगाथा का अपना ही एक ढांचा होता है। उसको देखने के अपने ही तरीके। लोकगाथाओं का एक रोचक पहलू ये भी है कि हमें लोकगाथा का एक ही तरह का पाठ नहीं मिलता। मान लीजिए गोगाजी की ही कथा सुनने चलें। तो मोटे तौर पर कहानी वही होगी पर छोटे-छोटे तथ्य बदलते रहेंगे। कोई लोकगायक कहेगा कि गोगाजी लड़ते हुए शहीए हुए। किसी के अनुसार वो भूमि में समा गए। किसी के अनुसार कथा आगे बढ़ती है और धरती में समा जाने के बावजूद गोगा जी अपनी पत्नी सिरियल से मिलने जाते रहे। वर्तमान में ये सब घुल मिल गए हैं। लोक गाथा बहुत जीवंत होती है। उसमें हर कलाकार-श्रद्धालु अपने हिसाब से जोड़ते-घटाते हैं।
आइए, गोगाजी महाराज की कथा का एक मोटा खाका खींचते हैं। राजस्थान में एक जगह है-ददरेवा। यहां राजा जेवर शासन करते थे। उनकी दो रानियां थी-काछल और बाछल। राजा की कोई औलाद नहीं थी। रानी बाछल की गुरु गोरखनाथ पर गहरी श्रद्धा थी। गुरु गोरखनाथ ने बाछल को संतान प्राप्ति के लिए एक फल देना चाहा जो धोखे से काछल ने ले लिया। काछल के दो बेटे हुए – अरजन-सरजन। पता लगने पर गोरखनाथ ने बाछल को गुग्गल दिया, जिसे बाछल ने पांच हिस्सों में बांट दिया। एक अपने लिए, तीन अपनी सहेलियों के लिए और एक बांझा घोड़ी के लिए। तो कुल मिलाकर पांच जीव इकट्ठेे पैदा हुए। चार इंसान और एक घोड़ा। ये पांचों पंजपीर कहलाते हैं। नर सिंह पांडे, भज्जू चमार, रतन सिंह भंगी और गोगाजी खुद। ये एक तरह से बहुजन समाज को प्रतिष्ठा देने वाला प्रतीक है। इस कथा में जो पांचों पीर हैं, उनमें जात-पात का भेद तोड़ दिया गया है। इन सबकी पूजा एक साथ होती है।
लोक गाथा के अनुसार बाछल के भाग्य में संतान थी ही नहीं। गोरखनाथ जी के प्रयत्न से एक सर्प ने ही बाछल के गर्भ से जन्म लिया। कुछ मान्यताओं के अनुसार वह खुद वासुकि नाग था, जिसे गाते हुए ‘बासक नाग’ कहा जाता है। कुछ अन्य लोग मानते हैं कि गुरु गोरख जी पाताल जाकर नाग के दांत के नीचे से दुर्लभ गुग्गल लाए जिससे गोगा हुए। ये एक मिसाल है कि कैसे रोचकता बढ़ाने के लिए लोकगायक मूल कथा में नए-नए बिंदू जोड़ते हैं।
इसके बाद गोगाजी का सिरियल के साथ विवाह का प्रसंग चलता है। यहां भी एक नाग गोगाजी की मदद करता है। वह है-ततिक नाग, जो संस्कृत काव्यों के ‘तक्षक’ नाग का ही अपभ्रंश है। सिरियल राजा संजा (संजय) की बेटी है और कथा में धूपनगर की रहने वाली है।
कथा का आखिरी हिस्सा युद्ध है जिसमें अरजन-सरजन राज पाने के लिए दिल्ली के सुल्तान की मदद लेते हैं और ददरेवा में लड़ाई होती है। अरजन-सरजन गोगाजी के हाथों मारे जाते हैं। गोगाजी की मां बाछल इस बात से नाराज होती है कि गोगाजी ने अपने ही मौसेरे भाई मार दिए। बाछल गोगाजी को हमेशा के लिए चले जाने को कहती है। गोगाजी गोगामेड़ी नामक जगह पर जमीन में समा जाते हैं।
हालांकि कहानी का यहीं अंत नहीं होता। गोगाजी अपनी पत्नी सिरियल से वायदा करते हैं कि रात में सांप के रूप में उनसे मिलने आया करेंगे। रानी सिरियल गर्भवती हो जाती है तो उसकी सास बाछल संदेहग्रस्त होती है। गोगाजी अपना रूप दिखाकर बाछल का शक दूर करते हैं पर साथ ही यह भी कहते हैं कि इसके बाद वे कभी महल में नहीं आएंगे।
ये बहुत संक्षेप में गोगाजी की कथा है। गोगाजी की कथा को पूरी रात भर गाया जाता है। इसे ‘साका’ कहते हैं। जिसमें ‘डेरू’ नामक वाद्ययंत्र का प्रयोग होता है। गोगाजी एक चौहान राजा थे। धीरे-धीरे वो अपने समाज के नायक और फिर नागों के देवता बने। उनके चित्र में सिर पर नागों का छत्र बनाया जाता है। राजस्थान के ही एक अन्य लोकदेवता तेजा जी भी सांपों के देवता माने जाते हैं। गोगाजी और तेजाजी के बारे में मान्यता है कि इनकी पूजा से नाग परेशान नहीं करते।
अगर हम भारतीय लोक कथाओं को सुनें तो उन सबमें ही ‘नाग’ एक ताकतवर प्रतीक के रूप में मौजूद है। भारतीय शाों में जिस ‘कुंडलिनी शक्ति’ का जिक्र है, वो कुंडलिनी भी सर्पाकार ही है। अगर हम मानव के स्वभाव की बात करें तो उसमें दो चीजें बहुत ताकतवर है-‘डर और ताकत’। नाग का प्रतीक इन दोनों को अपने में समेटे हुए है। उसमें भय भी है और जहर के कारण ताकत भी। फिल्मी कहानियों में भी नाग-नागिन लोकप्रिय विषय रहे हैं। ये भी ध्यान देने लायक बात है कि सांप बारिश के महीने में ज्यादा निकलते हैं और गोगाजी का त्यौहार भी बारिश के महीने में मनाया जाता है।
अब एक बार दोबारा गोगाजी के जमीन में समाने के बिंदू पर आते हैं। ये वो बिंदू है जो गोगाजी को मुस्लिम परंपरा के साथ जोड़ता है। हिन्दू परंपरा से निकटता रखने वाले कहते हैं कि सोमनाथ को लूटकर जाते हुए महमूद गजनवी के साथ गोगाजी ने वीरतापूर्वक युद्ध किया। गजनवी की सेना बहुत विशाल थी और गोगाजी की मित्र सेनाएं पहुंची नहीं थी। अत: गोगाजी उस लड़ाई में गजनवी से लड़ते हुए शहीद हुए।
रोहतक के पास के एक लोकगायक से दूसरे ढंग की कहानी सुनी। उसके अनुसार अरजन-सरजन को हराकर मारने के बाद गोगाजी की मां ने उन्हें हमेशा के लिए चले जाने को कहा। गोगाजी धरती में समाने के लिए तैयार हुए। पर धरती ने कहा कि ‘हिन्दुओं के लिए अग्नि है और मुसलमान के लिए धरती।’ यहां ये कहने का अर्थ कुछ यूं रहा कि मरने के बाद हिन्दू को जलाया जाता है और मुसलमान को दफनाया जाता है। गोगाजी इशारा समझ गए और उन्होंने ‘ढाई कलमें’ पढ़ीं। ‘ढाई कलमें’ पढऩे के बाद वे मुसलमान बने और धरती मां ने उन्हें अपने भीतर जगह दी।
गोगाजी के साथ कायमखानी मुस्लिमों को विशेष लगाव रहा है। राजस्थान के एक कवि ‘जान’ ने ‘कायमखान रासो’ लिखा है। इस किताब में गोगाजी का जिक्र है। कायमखानी मुस्लिमों के पीछे भी एक कहानी है। चौदहवीं शताब्दी में ददरेवा के राजा मोटेराव चौहान थे। उनके बेटे करमचंद ने तुगलक और सैयद नासिर के प्रभाव से इस्लाम ग्रहण किया। मुसलमान बनने के बाद करमचंद का नाम कायम खान हुआ। इस कायम खान और कायम खान के भाइयों के वंशज कायम खानी कहलाए। चूंकि ये सब गोगाजी के ददरेवा से संबंध रखते थे तो स्वाभाविक रूप से इनका गोगा पीर से विशेष ताल्लुक रहा। गोगाजी का काल लगभग 11वीं शताब्दी माना गया है। हालांकि इस बारे में कुछ भी पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता, पर ज्यादातर विद्वानों का यही मत है।
गोगाजी की कथा के सामाजिक मतलब क्या हैं? एक तो ये कि गोगाजी की कथा में भी, गोगाजी की कथा गाने वाले गायकों में तथा अनुयायियों में भी बहुजन चेतना बहुत ताकतवर है। उनकी जातीय पृष्ठभूमि दलित जातियों की है, जहां उन्हें पूरी आवाज मिलती है। हालांकि अब धीरे-धीरे गोगाजी पर मिलने वाले धार्मिक साहित्य का संस्कृतिकरण हुआ है। अन्य देवताओं की तर्ज पर ‘गोगा-चालीसा’, गोगा-व्रत कथा, गोगा-पुराण उपलब्ध होने लगे हैं। मुस्लिम समाज में जैसे-जैसे कट्टर इस्लाम का प्रचार बढ़ा है, वे अपने को लोक देवताओं से अलग हटा रहे हैं। लोक देवताओं की खास बात ये है कि इनके पीछे शास्त्रों की नहीं, बल्कि लोगों के प्रेम और श्रद्धा की ताकत होती है।
गोगाजी जैसे लोक देवताओं का सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू ये है कि इनमें हवाई दार्शनिकता नहीं है। इनको मानने वाला रोज की समस्याओं के लिए गोगाजी के पास जाता है। बुखार, सांप का काटना, बच्चा न होना या फिर अच्छी फसल। यहां मोक्ष, निर्वाण या परलोक जैसी बड़ी-बड़ी बातेें नहीं हैं। यहां जमीनी दिक्कतों की बातेें हैं। ये ‘पारलौकिकता’ के सामने ‘इहलौकिकता’ की प्रतिष्ठा है। यहां इंसान अपनी शूरवीरता से देवता बना है। उसके साथी प्रकृति में पाए जाने वाले नाग और घोड़ा हैं। गोगाजी सिर्फ हरियाणा-राजस्थान के ही नहीं, बल्कि उत्तर भारत के समस्त ग्रामीण जन के दिलों की धड़कन हैं। गोगाजी का अध्ययन धार्मिक ही नहीं, बल्कि हमारी सामाजिक सांस्कृतिक जरूरत भी है।
स्रोतः सं. सुभाष चंद्र, देस हरियाणा (जुलाई-अगस्त 2016), पेज – 75-76
Pooja
Jai ho mere guga peer jI
डा. आदेश कुमार
बौद्धिक जुगाली से अधिक कुछ नहीं।
एक महान सनातनी धर्मरक्षक राजा जो जेहादी आक्रांताओं से अपने देश व धर्म की रक्षा करते हुए बलिदान हुए व जिन्हे प्रेम व श्रद्धा से समस्त सनातनी समाज ने देवता के रूप में स्वीकार किया उनके कद को छोटा करने का ढीट प्रयास भर।