सावित्रीबाई फुले का जीवन ममता का पर्याय है। जोतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले ने शिक्षा के लिए दूर दूर से आने वाले विद्यार्थियों के लिए अपने घर में ही छात्रावास भी चला रहे थे। मुंबई का एक विद्यार्थी लक्ष्मण कराडी जाया उनके हॉस्टल में रहा था। अपने संस्मरणों में उसने सावित्रीबाई फुले के व्यक्तित्व के बारे में लिखा कि वे मां की तरह देखभाल करती थी। “मैंने सावित्रीबाई जैसी इतनी दयालु महिला नहीं देखी। उन्होंने मुझे मां से भी अधिक प्यार दिया।”
महाडू वाघले नामक छात्र ने अपने संस्मरण में सावित्रीबाई फुले के स्वभाव, सादगीपूर्ण जीवन तथा फुले दम्पति के बीच प्रगाढ़ प्रेम के बारे में लिखा है- “वे बहुत उदार थीं और उनका ह्रदय दयालुता से पूर्ण था। गरीबों और जरुरतमंदों के प्रति वे अत्यंत करुणाशील थी। वे भूखों को भोजन का दान करती रहती थीं। यदि वे किसी गरीब महिला को फटे-पुराने चीथड़ों में देखतीं, तो अपने घर से उसे साड़ियाँ निकाल कर दे देतीं थीं। उनकी इन आदतों से घर के खर्चे बढ़ते गए। तात्या (जोतिबा फुले) उनसे कभी-कभार कहते कि किसी को इतना ज्यादा खर्च नहीं करना चाहिए। इस पर वे मुस्कराकर जबाब देतीं, “मरेंगे तो क्या ले जायेंगे!” इसके बाद तात्या चुप हो जाते क्योंकि उनके पास कोई जबाब नहीं होता। वे एक-दूसरे से अथाह प्रेम करते थे।”
महिलाओं के उत्थान को लेकर सावित्रीबाई अत्यधिक उत्साहित थीं। वो एक सुन्दर दिखने वाली और मध्यम कद-काठी की महिला थीं। उनका व्यवहार अत्यंत शांत एवं संयत था। उनके संयत स्वभाव से ऐसा लगता था जैसे कि वो गुस्सा जानती ही न थीं। उनकी मुस्कान अत्यंत रहस्यमयी होती थी। सब लोग उन्हें ‘काकू’ कहकर कहकर बुलाते थे। अतिथियों के घर आने पर वो बहुत प्रसन्न होती और स्वयं उनके लिए पकवान बनाती। जोतिराव सावित्रीबाई का बहुत सम्मान करते थे और सावित्रीबाई उन्हें ‘सेठजी’ कहकर बुलाती थीं। उनके बीच सच्चा प्रेम था। जोतिबा फुले कभी ऐसा कोई कार्य नही करते थे जिसमे सावित्रीबाई की सहमति न होती।
सावित्रीबाई एक दूरदर्शी और सुलझी हुई महिला थीं। उनके रिश्तेदारों और सामाजिक संपर्कों में उनकी बहुत इज्ज़त थी। एक गर्ल्स स्कूल की अध्यापिका होने के कारण नवशिक्षित महिलाओं में भी उनके लिए बहुत आदर था। अपने पास आने वाली सभी महिलाओं और लड़कियों को वो हमेशा सलाह और मार्गदर्शन प्रदान करतीं थी। पंडिता रमाबाई, आनंदीबाई जोशी और रमाबाई रानाडे सहित पुणे की कई सुविख्यात महिलायें उनसे मिलने आती थीं।
तात्या (जोतिबा फुले) की तरह सावित्रीबाई भी हमेशा सादे वस्त्र पहनती थीं। एक मंगलसूत्र, गले में काले मनकों की एक माला और एक बड़े से ‘कुंकू’ (सिंदूर का टीका) के अलावा वे अन्य कोई आभूषण नही पहनती थीं। सूर्योदय से पहले ही वो घर की साफ-सफाई और स्नान कर लेती थीं। उनका घर हमेशा स्वच्छ रहता था। घर में बर्तन हमेशा दमकते हुए और सुव्यवस्थित रहते थे। भोजन वो स्वयं पकाती थीं और तात्या के स्वास्थ्य और आहार का बहुत ध्यान रखती थीं। ”
यह वर्णन उस व्यक्ति का है जो स्वयं उनके साथ रहा था। सावित्रीबाई के बारे में यह संभावित से ज्यादा प्रमाणिक तथ्य है। यह वर्णन एक क्रान्तिकारी महिला के घरेलू दैनिक जीवन के बारे में एक प्रामाणिक टिप्पणी है।