सुकरात – जवाहर लाल नेहरू
Post Views: 16 सुकरात तत्त्वज्ञानी था और हमेशा सत्य की खोज में रहता था। उसके लिए सच्चा ज्ञान ही एक ऐसी चीज थी, जिसे वह प्राप्त करने योग्य समझता था।
Post Views: 16 सुकरात तत्त्वज्ञानी था और हमेशा सत्य की खोज में रहता था। उसके लिए सच्चा ज्ञान ही एक ऐसी चीज थी, जिसे वह प्राप्त करने योग्य समझता था।
Post Views: 12 सन् 1887 में सावित्रीबाई फुले के पति जोतिबा फुले को अंधरंग हो गया था। अपने जीवन के अंतिम तीन साल उन्होंने बिस्तर पर गुजारे। सावित्रीबाई फुले व
Post Views: 20 आपको यह जानकर खुशी होगी कि जिस नूह में पिछले दिनों सांप्रदायिक दंगे कराये गये उसी इलाके में नूह के नज़दीक आकेड़ा गांव में अठारहवीं सदी में
Continue readingमेवाती शायर सादल्ला, जिसने मेवाती बोली में लोक महाभारत रचा – जीवन सिंह
Post Views: 10 रुरु एक मृग था। सोने के रंग में ढला उसका सुंदर सजीला बदन; माणिक, नीलम और पन्ने की कांति की चित्रांगता से शोभायमान था। मखमल से मुलायम
फाँसी पर लटकाए जाने से 3 दिन पूर्व- 20 मार्च, 1931 को – सरदार भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव ने पंजाब के गवर्नर से माँग की थी की उन्हें युद्धबन्दी माना जाए तथा फाँसी पर लटकाए जाने के बजाय गोली से उड़ा दिया जाए। … Continue readingहमें फाँसी देने के बजाय गोली से उड़ाया जाए
Last Letter to Comrades before Martyrdom. … Continue readingसाथियों को अन्तिम पत्र – भगत सिंह
मैं ‘विवाह’ या ‘शादी’ जैसे शब्दों से सहमत नहीं हूँ। मैं इसे केवल जीवन में साहचर्य के लिए एक अनुबन्ध मानता हूँ । इस तरह के अनुबन्ध में मात्र एक वचन; और यदि आवश्यकता हो, तो अनुबन्ध के पंजीकरण के एक प्रमाण की जरूरत है। अन्य रस्मों-रिवाजों की कहाँ आवश्यकता है? इस लिहाज से मानसिक श्रम, समय, पैसे, उत्साह और ऊर्जा की बर्बादी क्यों? … Continue readingपति-पत्नी नहीं, बनें एक-दूसरे के साथी – पेरियार
यह लेख भगत सिंह ने जेल में रहते हुए लिखा था और यह 27 सितम्बर 1931 को लाहौर के अखबार “ द पीपल “ में प्रकाशित हुआ । इस लेख में भगतसिंह ने ईश्वर कि उपस्थिति पर अनेक तर्कपूर्ण सवाल खड़े किये हैं और इस संसार के निर्माण , मनुष्य के जन्म , मनुष्य के मन में ईश्वर की कल्पना के साथ साथ संसार में मनुष्य की दीनता , उसके शोषण , दुनिया में व्याप्त अराजकता और और वर्गभेद की स्थितियों का भी विश्लेषण किया है । यह भगत सिंह के लेखन के सबसे चर्चित हिस्सों में रहा है।
स्वतन्त्रता सेनानी बाबा रणधीर सिंह 1930-31के बीच लाहौर के सेन्ट्रल जेल में कैद थे। वे एक धार्मिक व्यक्ति थे जिन्हें यह जान कर बहुत कष्ट हुआ कि भगतसिंह का ईश्वर पर विश्वास नहीं है। वे किसी तरह भगत सिंह की काल कोठरी में पहुँचने में सफल हुए और उन्हें ईश्वर के अस्तित्व पर यकीन दिलाने की कोशिश की। असफल होने पर बाबा ने नाराज होकर कहा, “प्रसिद्धि से तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है और तुम अहंकारी बन गए हो जो कि एक काले पर्दे के तरह तुम्हारे और ईश्वर के बीच खड़ी है। इस टिप्पणी के जवाब में ही भगतसिंह ने यह लेख लिखा। … Continue readingमैं नास्तिक क्यों हूँ? – भगत सिंह
Post Views: 36 आर्य समाज की स्थापना महर्षि दयानंद सरस्वती ने सन 1875 में की थी। इसके लिए सर्वप्रथम उन्होंने इसके नियमों की रचना की और बाद में स्थानादि की
Continue readingआर्य समाज और सांप्रदायिक तत्व – राम मोहन राय
Post Views: 25