बलबीर सिह राठी उर्फ कमल

बलबीर सिह राठी उर्फ कमल

बलबीर सिह राठी उर्फ कमल का जन्म रोहतक जिले के लाखनमाजरा गांव में अप्रैल 1933 को। अंग्रेजी में स्नातकोतर। विभिन्न राजकीय महाविद्यालयों में प्राध्यापक एवं प्राचार्य रहे। सामाजिक गतिविधियों में हमेशा सक्रिय। उर्दू के मशहूर शायर। कई गजल-संग्रह प्रकाशित। उर्दू अकादमी और भाषा-विभाग द्वारा सम्मानित।
 

1

जब तै पूरी हुई पढाई जी मेरा दुख पाग्या
कै बूझेगा बात मेरी मैं जीवण तै तंग आग्या
मैं तै ठाठ तै पढ़्या करूं था घर के दुख पा रहे थे
मेरा खर्च पुगावण नै रूखा-सूखा खा रहे थे
मेरी पढाई खतम हौण पै आस घणी ला रहे थे
मैं सारे दुख दूर करूगां न्यू दिल समझा रहे थे
न्यूं सोचूं था बखत ईब दुख दूर करण का आग्या
जित अरजी द्यों मेरे जिसां की लाईन लागी पावै
मां-बापां नै होया कुप्यारा घर खावण नै आवै
ताऊ-चाचे न्यूं कहें सैं तौं बड़ी नौकरी चाह्वै
छोटी-मोटी टोह्ले नै क्यों हाथ बड़ी कै लावै
सारी बातां नै सुण-सुण कै जी मेरा घबराग्या
भूखा-भाणा फिरूं भरमता ना पीया ना खाया
भाभी फिर बी ताने मारै के टूम घड़ा के लाया
बड्डा भाई छो में आज्या तों हमनै किसा पढ़ाया
कितनी बड्डी गलती कर दी न्योंए घर लुटवाया
तेरी पढाई नैं के चाटैं, तो सारा घर उघवाग्या
सारे सपने धूळ में मिलगे मुशकिल जीणा होग्या
माणस-माणस के तान्यां का जहर भी पीणा होग्या
बेरा नां के सोच्या करदा, मैं माणस हीणा होग्या
के ब्याह-टेले की बात करैं मनै मुशकिल जीणा होग्या
या बिपता तौ न्युएं रहैगीं ‘कमल’ मनैं समझाग्या
 

2

थाड़े से तो ठाठ करैं सै तेरा फकीरी बाणा
ऊठ कमेरे तेरा दुखड़ा चाहूं तनै सुनाणा
न्यूं तै सोच कै देख तेरा धन किन हाथां में जार्या सै
कौण दुखी सै तेरी तरियां कौण ठाठ कर र्या सै
भोळे माणस तेरी कमाई कौण कड़े कै  खा सै
क्यों तेरे घर में घोर गरीबी दिन-दिन बढती जा सै
भाईयां कै खीया चढ रह्या तैने दुश्मन कड़े पिछाणा
मील चलावै, नाज उगावै करै सै काम भतेरे
तन पै फेर बी कपड़ा कोन्या, भूखे बाळक तेरे
तूं पीसे-पीसे नै तरसै अरबांपति लुटेरे
कितै चान्दणा दीखै कोन्या चारों ओड़ अन्धेरे
क्यों ना सोचै अपणी खातिर, यू सै मेरा उल्हाणा
मुफ्त खोर तेरे पक्के दुश्मन, मेहनतकश तेरे भाई
जो तेरे दुख-सुख के साथी, सोचैं तेरी भलाई
तेरे तैं जो घणे दुखी क्यों उन तैं करे लड़ाई
जात-पात की बात करैं वह सैं निरे कसाई
गांठ मार ले मेरी बात की जै चाह्वै सुख पाणा
जाड्डे कै मां जाड़ी बाजैं, खेत में जाणा पड़ज्या
पड़ै कसाई घाम फैर बी ईख नुलाणा पड़ज्या
इतणा कर कै बी माणस नै रूखा खाणा पड़ज्या
न्यों लागै सै आज ‘कमल’ ने भेद बताणा पड़ज्या
तने लूटणीयें घणे छाखटे, तों माणस कोन्या स्याणा

3

इब लुटेरे और कमेरा में बन्ध ग्या सै पाळा
एक ओड़ होणा होगा अड़ै कोन्या बीच बिचाळा
चौगरदे तैं लुटण लाघर्या कित-कित तैं समझावैं
तनै बावळा राखण खातर कितने पेच लड़ावैं
धरम-करम की बात करैं न्यों तनै लूट कै खावैं
कुछ जात-पात की बात करैं न्यों तनै भकावण आवैं
इतणा प्यारा क्यों लागै सै तनै भकावण आळा
तेरे छोरे बणैं सन्तरी करड़ा हुकम बजावैं
उनके बेटे अफसर बण कल्बां में मौज उडावैं
कदे लड़ाई हो तै साबण पी कै घर आ जावैं
तेरे छोरे कट-कट मरज्यां देश का मान बढावैं
फेर बी मालिक वहे देश के तों देश का किसा रुखाळा
बिना नौकरी तेरा छोरा छुरे चलाणा सीखै
बणै बिकाऊ झूठी साची बात बनाणा सीखै
बेईमानां की करै गुलामी हुकम बजाणा सीखै
पीसे आळे मस्टण्डां के नारे लाणा सीखै
मुफत की रोटी खाणा सीखै, पड़ज्या फेर कुढाळा
उन का धन तै रोज बधै तम होते जाओ कंगले
थारै कच्चे-पक्के ढारे उनके बढिया बंगले
सुख चाहवै तै अपणे आप नै नए रंग में रंग ले
क्योकर अपणी लड़ै लडाई सीख थोडा सा ढंग ले
काम करणीयें तनै कदे तै हुकम सुणण का ढाळा
इब इस दल दल तैं लिकडन की तदबीर बनाणी होगी
जात-पात की बात छोड या बात पुराणी होगी
तों बी इब तै होज्या स्याणा या दुनिया स्याणी होगी
लूटणीयां की जब जाकै न खतम कहाणी होगी
कट्ठे मिलकै ललकारांगे फेर पाटैगा चाळा
ठाली बैठे ऐश करें उनके घर में धन माया
काम करणीयें तेरै घर टोटा हुऐ सिवाया
तनैं ‘कमल’ तैं पूछा कोन्या यो किसनै जाळ बिछाया
जिसमैं फंस के तेरे जिस्सां की काळी होगी काया
घणी सदियां दुखी रह लिया ले ले ईब सम्भाळा
 
स्रोतः सं. सुभाष चंद्र, हरियाणवी लोकधारा – प्रतिनिधि रागनियां, आधार प्रकाशन पंचकुला, पेज – 156 से 159
 

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