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1 तनै फसल पै न्यूं बरसाएं औळेजणूं दो देशां नै होकै क्रुद्ध आपस के मैं हो छेड़ा युद्ध किसान मनावै जे आवै बुद्ध जो रूकवावै तेरे बरसते गोळे तनै फसल… तनै भी हम समझें

गिरने के इस दौर में, कैसा शिष्टाचार।अच्छे हैं अब दाग़ भी, कहता है बाज़ार।। उतनी ऊँची कुर्सियाँ, जितने ओछे बोल।अगर तरक्की चाहिए, हर पल नफ़रत घोल।। भटयारी दानी हुई, पापी

कविताOctober 21, 2025

अंगूठे महाजन के बहीखातों मेंजिन्दा दफ़न हैं आज भीअंगूठों के निशानों की कई पीढ़ियांआज भी अंगूठों के निशानों की सूखी स्याही मेंछटपटा रही है खेतों की मिट्टीधान की लहराती बालियों

कविताOctober 21, 2025

1 . उस राह पर चल पड़ो उस राह पेजिससे थे बंधे वो सेतूकोसों दूर भाग रही है सभ्यता जिससेनैतिकता के घड़े अब फूटने लगे हैंरिसने लगा है खून पानी

कविताFebruary 15, 2025

जब बिना बैड मरीज़ सड़क पर पड़े हों आक्सीजन के बिना लोग तड़प कर मर रहे हों हस्पतालों को आग के हवाले किया जा रहा हो मरीज़ जल कर राख

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मैं और मेरे पिता मैं जात-धर्म भूलकरलोगों के हक के लिएजब भी सड़क पर उतरता हूँजाने क्यों, मेरे पिता को लगता हैमैं उनके ही खिलाफ हूँ – जसिंता केरकट्टा

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