कविता नहीं अब चाक नहीं चलते कुम्हारों के गीली माटी अब नहीं महकती पहिया नहीं घूमता हमारी पृथ्वी सा न ही कुम्हार के हाथ माटी से सने मिलते हैं धूप
कविता नहीं अब चाक नहीं चलते कुम्हारों के गीली माटी अब नहीं महकती पहिया नहीं घूमता हमारी पृथ्वी सा न ही कुम्हार के हाथ माटी से सने मिलते हैं धूप
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग के सभागार में देस हरियाणा की तरफ वरिष्ठ कवि ओम प्रकाश करुणेश के हाल ही में प्रकाशित हुए काव्य संग्रह ‘बुत गूंगे नहीं