ओ मेरी कविता कहाँ हैं तेरे श्रोता? कमरे में कुल बारह लोग और आठ खाली कुर्सियाँ- चलो अब शुरू करते हैं यह सांस्कृतिक कार्यक्रम कुछ लोग और अंदर आ गये
ओ मेरी कविता कहाँ हैं तेरे श्रोता? कमरे में कुल बारह लोग और आठ खाली कुर्सियाँ- चलो अब शुरू करते हैं यह सांस्कृतिक कार्यक्रम कुछ लोग और अंदर आ गये
दास्तान- ए -शहर कैसे बयां करूंजीऊँ तो कैसे जीऊँ, मरूँ तो कैसे मरूँ मैं सन् 1984 में इस शहर में आया तो इसे आदतन शहर कहकर अपने कहे पर पुनर्विचार
निंदर घुगियाणवी (निंदर घुगियाणवी पंजाबी के लेखक हैं। ‘जब मैं जज का अर्दली था’ घुगियाणवी का आत्मवृत साहित्य की दुनिया में खूब मकबूल हुआ। इसमें घुगियाणवी ने भारतीय न्याय-व्यवस्था के