सावित्रीबाई फुले का जीवन ममता का पर्याय है। जोतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले ने शिक्षा के लिए दूर दूर से आने वाले विद्यार्थियों के लिए अपने घर में ही छात्रावास
सावित्रीबाई फुले का जीवन ममता का पर्याय है। जोतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले ने शिक्षा के लिए दूर दूर से आने वाले विद्यार्थियों के लिए अपने घर में ही छात्रावास
संस्मरण मुझे एक अफसोस है, वह अफसोस यह है कि मैं उन्हें पूरे अर्थों में शहीद क्यों नहीं कह पाता हूँ, मरते सभी हैं, यहां बचना किसको है! आगे-पीछे सबको
किसी विद्वान का व्याख्यान सुनने से या उसकी पुस्तक पढ़ने से जितना फायदा होता है उससे कहीं ज्यादा उस के सत्संग से होता है इसलिए हमारे यहां सत्संग की बहुत
हमारे शैशवकालीन अतीत और प्रत्यक्ष वर्तमान के बीच में समय- प्रवाह का पाठ ज्यों-ज्यों चौड़ा होता जाता है त्यों-त्यों हमारी स्मृति में अनजाने ही एक परिवर्तन लक्षित होने लगता है।
भोपाल के हमीदिया अस्पताल में मुक्तिबोध जब मौत से जूझ रहे थे, तब उस छटपटाहट को देखकर मोहम्मद अली ताज ने कहा था – उम्र भर जी के भी न जीने का अन्दाज आयाजिन्दगी छोड़ दे पीछा मेरा मैं बाज आया जो मुक्तिबोध को निकट से
प्रसादजी से मेरा केवल बौद्धिक संबंध ही नहीं, हृदय का नाता भी जुड़ा हुआ है। महाकवि के चरणों में बैठकर साहित्य के संस्कार भी पाए हैं और दुनियादारी का व्यावहारिक