लम्बे अरसे से मंगत राम शास्त्री हरियाणवी ग़ज़ल लिख रहे हैं। इनकी रचनाओं में पोलिटिकल फंडामेंटलिज्म के प्रति सचेत विरोध है। इसके अलावा शास्त्री की गज़लें अपने वर्तमान से संवाद
लम्बे अरसे से मंगत राम शास्त्री हरियाणवी ग़ज़ल लिख रहे हैं। इनकी रचनाओं में पोलिटिकल फंडामेंटलिज्म के प्रति सचेत विरोध है। इसके अलावा शास्त्री की गज़लें अपने वर्तमान से संवाद
मनजीत भोला की ग़ज़ल आम आदमी की ग़ज़ल है, आम आदमी से भी बढ़कर वह हाशिए पर जबरन धकेल दिए गए लोगों की ग़ज़ल है। भोला को ग़ज़ल ना तो
“उजाले हर तरफ होंगे” ग़ज़ल संग्रह के रूप में देसहरियाणा ने मनजीत भोला की प्रगतीशील मूल्यों की रचनाएं प्रकाशित की थी। उन ग़ज़लों को प्रदेश और प्रदेश से बाहर सराहा
मंगत राम शास्त्री- जिला जींद के ढ़ाटरथ गांव में सन् 1963 में जन्म। शास्त्री (शिक्षा शास्त्री), हिंदी तथा संस्कृत में स्नातकोत्तर। साक्षरता अभियान में सक्रिय हिस्सेदारी तथा समाज-सुधार के कार्यों में रुचि। ज्ञान विज्ञान आंदोलन में सक्रिय भूमिका। “अध्यापक समाज” पत्रिका का संपादन। कहानी, व्यंग्य, गीत, रागनी एंव गजल विधा में निरंतर लेखन तथा पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन। “अपणी बोली अपणी बात” नामक हरियाणवी रागनी-संग्रह प्रकाशित।
हम विद्रोही, हम क्रान्ति-दूत, हम हैं विप्लववादी,तुफानों से ही लड़ने के हम हैं हरदम आदी। है धर्म हमारा दीनों के दुखों को पी लेना,है कर्म हमारा फटे हुए सीनों को
यह हिन्दोस्ताँ है हमारा वतन,मुहब्बत की आँखों का प्यारा वतन,हमारा वतन दिल से प्यारा वतन। वह इसके दरखतों की तैयारियाँ,वह फल-फूल पौधे वह फुलवारियाँ,हमारा वतन दिल से प्यारा वतन। हवा