हम हरियाणा के जिस इलाके में रहते हैं उसमें गांव में पूजा के मुख्य स्थलों में खेड़ा, पीर, सती तथा डेरे मुख्यत: सामूहिक पूजा स्थलों के तौर पर सौ साल
हम हरियाणा के जिस इलाके में रहते हैं उसमें गांव में पूजा के मुख्य स्थलों में खेड़ा, पीर, सती तथा डेरे मुख्यत: सामूहिक पूजा स्थलों के तौर पर सौ साल
अगर इसी तरह से बड़े बांध, जल विद्युत परियोजनाएं और कारखानों का विस्तार हिमाचल में होता रहा तो वह दिन दूर नहीं है जब यहां पर भी मैदानों की तरह धरती तपने लगेगी और इस से मौसम परिवर्तन से यहां की कृषि-बागवानी भी बरबाद हो जाएगी।
“वन संरक्षण कानून 1980 में प्रस्तावित संशोधन गैर लोकतांत्रिक” हिमाचल के जंगलों और पारिस्थितिकी पर इसका विपरीत असर होगा हाल ही में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा वन
आजादी प्राप्त करने के बाद भी किसान की हालत बहुत नहीं बदली। अंग्रेजी साम्राज्यवादी शासन किसानों के अनाज को खलिहान से उठा ले जाता था, लेकिन आज की शोषक नीतियां फसल पकने से पहले ही खाद-तेल-दवाई-बीज के माधयम से पहले ही लूट लेती हैं। किसान के श्रम का शोषण ही है, जिसके कारण उसकी ऐसी दयनीय हालत है, वरन् वह न तो कामचोरी करता है और न ही फिजूलखर्ची।(लेख से )
12 सितम्बर 2021 को रोहतक (हरियाणा) में आयोजित ‘जैविक खेती जन संवाद’ में लगभग 300 लोगों ने भाग लिया. पहली बार कुदरती खेती अभियान, जो एक अपंजीकृत एवं अवित्पोषित स्वयंसेवी प्रयास है, द्वारा आयोजित कार्यक्रम में कृषि से जुड़ी सरकारी संस्थाओं जैसे हिसार कृषि विश्वविद्यालय, हरियाणा बागवानी विभाग इत्यादि के प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया.
आखिरकार देश के प्रधानमंत्री ने किसान आंदोलन के सवाल पर जो वैचारिक अभियान शुरू किया उससे ही बात शुरू करना उचित होगा । कारण कि देश के मुखिया होने के