समय के सामने305- Page

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हम लोग जो अपने आप को प्रगतिशील कहते हैं, सेकुलर कहते हैं, उदारवादी कहते हैं या वामपंथी कहते हैं, हम जिस भाषा में बात करते हैं, जिस मुहावरे में बात करते हैं, उसमें कहीं ना कहीं गड़बड़ है। हमारी भाषा हमें जन मानस से जोड़ने का काम नहीं कर पा रही है। और सोचने पर महसूस हुआ कि मामला सिर्फ भाषा और मुहावरे का नहीं है, हमारी बुनियादी सोच में खोट है। हमारी सोच, हमारी अवधारणाएं और हमारे सिद्धांत सब एक यूरोपीय अनुभव की पैदाइश हैं और कहीं न कहीं उसी खांचे में कैद हैं। समतामूलक राजनीति को एक देशज विचार की जरूरत है।

“होंदा सी इत्थे शख्स़ इक सच्चा जाणे किदर गया जद दो दिलां नूं जोड़दी एक तार टुट गई- जद दो दिलां नूं जोड़दी एक तार टुट गई, साजिंदे पुछदे साज नूं नग़मा किदर गया, सब नीर होए गंदले, शीशे होए धुंधले इस तरह हर शख्स़ पुछदा हे, मेरा चेहरा किदर गया सिक्खां, मुसलमाना ते हिंदुआं दी पीड़ विच रब ढूंढदा फिरदा, मेरा बंदा किदर गया दुःख दी ज़मीं नू पुछदा अल्लाह किदर गया पातर नू जाण-जाण के पुछदी है आज हवा रेतां ते तेरा नाम लिख्या सी, जाणे किदर गया   

इस समय, देश में धर्म की धूम है। उत्पात किए जाते हैं, तो धर्म और ईमान के नाम पर और जिद्द की जाती है तो धर्म और ईमान के नाम पर। रमुआ पासी और बुद्धू मियां धर्म और ईमान को जानें या न जानें, परंतु उसके नाम पर उबल पड़ते हैं और जान लेने और जान देने के लिए तैयार हो जाते हैं। देश के सभी शहरों का यही हाल है। उबल पड़ने वाले साधारण आदमी का इसमें केवल इतना ही दोष है कि वह कुछ भी नहीं समझता-बूझता और दूसरे लोग उसे जिधर जाने देते हैं, उधर जुत जाता है। यथार्थ दोष है, कुछ चलते-पुरजे, पढ़े-लिखे लोगों का, जो मूर्ख लोगों की शक्तियों और उत्साह का दुरुपयोग कर रहे हैं कि इस प्रकार, जाहिलों के बल के आधार पर उनका नेतृत्व और बड़प्पन कायम रहे। इसके लिए धर्म और ईमान की बुराइयों से काम लेना उन्हें सबसे सुगम मालूम पड़ता है। सुगम है भी।

प्रस्तुति – गुंजन  कैहरबा सृजन उत्सव के दौरान 25 फरवरी को ‘पत्र-पत्रिकाएः साहित्यिक सरोकार एवं प्रसार’ विषय पर परिसंवाद का आयोजन हुआ। जिसमें ‘युवा संवाद’ पत्रिका के संपादक डा. अरुण

अनुवादMay 16, 2018

विश्व प्रसिद्ध रुसी कहानीकार अंटोन चेखव ने अपनी प्रसिद्ध कहानी गिरगिट में शासन-प्रशासन  में फैला भ्रष्टाचार, जनता के प्रति बेरुखी और अफसरशाही की चापलूसी को उकेरा है। भारतीय संदर्भों में भी प्रासंगिक है। प्रस्तुत है इस कहानी का राजेंद्र सिंह द्वारा हरियाणवी अनुवाद। सं.

अनुवादMay 16, 2018

 दक्षिणी अफ्रीकी लेखिका पॉलिन स्मिथ (1882-1959) लघु कहानियों के लिए प्रसिद्ध है। प्रस्तुत कहानी में एक किसान अपनी जमीन बचाने के लिए अपनी बेटी को एक बूढ़े जमींदार के साथ ब्याह देने के लिये मजबूर है। औरत की दुविधा और व्यथा बड़ी गंभीरता से प्रस्तुत की है। भारतीय कृषि प्रधान समाज के सामंती भू-संबंधों में यह बेहद प्रासंगिक है। प्रस्तुत है काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी में अंग्रेजी विभाग में  एसिसटेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत डॉ. देवेन्द्र कुमार द्वारा  किया गया अनुवाद। सं.-

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