सेहत
एक तरफ हरियाणा में धनाढ्य वर्ग है दूसरी तरफ बड़ा हरियाणा इस विकास की अन्धी दौड़ में गिरता पड़ता गुजर बसर कर रहा है। एक हिस्सा ऐसा भी है जिसके पास आवास और रोटी रोजी का संकट गहराता जा रहा है।
धनाढय़ वर्ग के स्वास्थ्य की समस्याओं के समाधान के लिए पिछले दो दशकों में प्राईवेट सेक्टर स्वास्थ्य क्षेत्र में काफी बढ़ा है। दूसरी तरफ आम आदमी के लिए और उसके बच्चों के लिए सरकारी अस्पतालों के ढांचे के चरमराते जाने के कारण इलाज उनकी पहुंच से दूर होता जा रहा है। हरियाणा में 1966 से लेकर 1990 और फिर 2005- 2006 तक स्वास्थ्य सेवाओं के ढांचे का किसी हद तक विकास हुआ मगर उसके बाद प्राईमरी और सैकण्डरी स्वास्थ्य के ढांचे की रफ्तार धीमी होती चली गई। यह कहा जा सकता है कि 1966 से लेकर अब तक स्वास्थ्य सेवाओं के ढांचे में 5 गुणा बढोतरी हुई है सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों और अस्पतालों के संदर्भ में देखा जाए तो। मगर आज की जनसंख्या 2011 के आंकड़ों के हिसाब से यदि आकलन करें तो तस्वीर ज्यादा उत्साहवर्धक नहीं नजर आती। 2011 के सर्वेक्षण के हिसाब से हरियाणा की कुल जनसंख्या 25,351,462 है। इसमें 65.12 प्रतिशत लोग गांव में रहते हैं मतलब 16,509,359 लोग। भारत सरकार के मापदण्डों के हिसाब से 5000 जनसंख्या पर एक उप स्वास्थ्य केन्द्र अर्थात सी एच सी होना चाहिये। 30,000 की जनसंख्या पर एक प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र और एक लाख की आबादी पर एक सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र होना चाहिये।
हरियाणा की स्वास्थ्य सेवाओं का ढांचा-दिसम्बर,2015 यदि ग्रामीण जनसंख्या के हिसाब से देखें :
संस्था जो हैं जो चाहिये
उप स्वास्थ्य केन्द्र 2630 3301
प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र 486 550
सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र 119 165
भारत सरकार के बनाए गए मापदण्डों के हिसाब से प्रत्येंक सामुदायिक केन्द्र में एक सर्जन , एक स्त्री रोग विशेषज्ञ, एक शिशु रोग विशेषज्ञ और एक फिजिसीयन होना चाहिये। 60 सालों के बावजूद हरियाणा की इन 119 सी.एच.सी.की हालत काफी खराब है। पी. एच. सी की भी हालत अच्छी नहीं कही जा सकती।
सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं का ढांचा जरुरत के हिसाब से विकसित नहीं किया गया। जो है उसको भी सुचारु रुप से क्यों नहीं चलाया जा रहा। क्या महज बिल्डिंग बना देने से और बड़े कमीशन खाकर उन बिल्डिंगों में आधुनिक मशीनें खरीद कर रख देने से काम चल जायेगा? बिल्कुल नहीं। दरअसल हमारी योजनाओं में परे सिरे से ही मानव फैक्टर गायब है।
प्रदेश के जिलों गुड़गांव, रोहतक, हिसार, भिवानी, फरीदाबाद और सोनीपत में विशेष आर्थिक पैकेज के तहत करोड़ों रुपये की परियोजनांए शुरु की गई हैं जिसके तहत स्वास्थ्य सेवाओं के आधारभूत ढांचे को विकसित करने के लिए इन जिलों के अस्पतालों को अपग्रेड करके सुपर स्पैशिलिटी अस्पताल बनाये जा रहे हैं।
बहुत ही हाईटेक उपकरण जो पिछले सालों में खरीदे गए वो बहुत कम जगह और कमतर स्तर पर इस्तेमाल किये जा रहे हैं। यहां पर उपयुक्त स्टाफ की कमी को तत्काल पूरा करते हुए इसके लिए सम्बंधित विशेषज्ञों, डॉक्टरों, नर्सों व पैरामैडिकल स्टाफ को उपयुक्त ट्रेनिंग देने की भी आवश्यकता है।
प्रदेश में एम.बी.बी.एस.की सीटें बढ़ी हैं मगर इन विद्यार्थियों की गुणवता पूर्ण मैडीकल शिक्षा के लिए जरुरी फैकल्टी के साथ-साथ Key इन्फ्रास्ट्रक्चर की भी भारी कमी है। बेहतर शिक्षक मिल ही नहीं है। मैडीकल कालेजों में शिक्षकों की बड़ी समस्या है। चिकित्सा शिक्षा की गुणवता में काफी कमी आई है।
निशुल्क सर्जीकल पैकेज योजना के तहत 2009 से बी. पी. एल परिवारों एवं गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले व अधिसूचित झोंपड़ पट्टियों एवं बस्तियों के निवासियों के सभी आपरेशन मुफ्त करने की निशुल्क सर्जरी की सेवा ढंग से लागू नहीं की जा रही। इंदिरा बाल स्वास्थ्य योजना 26 जनवरी 2010 से लागू की गई। जिसके तहत अठारह वर्ष तक की आयु के बच्चों के स्वास्थ्य कार्ड बना कर सरकारी अस्पतालों में उनके स्वास्थ्य की निषुल्क जांच व ईलाज किया जाता है। बहुत से लोगों को इन सब योजनाओं से वाकिफ ही नहीं करवाया गया।
स्वास्थ्य सुविधाएं देते हुए मध्यम दर्जे के कार्यकर्ताओं (नर्स, ए. एन. एम., और पैरा मैडिकल कर्मी) ये कार्यकर्ता ही लोगों की समस्याओं के सम्पर्क में आते हैं। परन्तु खुद के स्वास्थ्य के क्षेत्र के काम के विश्लेशण में इनकी भागीदारी न के बराबर है। पहली बात तो यह कि निचले दर्जे में होने के कारण इनसे सिर्फ आदशों के पालन की अपेक्षा की जाती है, निर्णयों में इनकी कोई भागीदारी नहीं होती। दूसरी बात यह है कि इनकी ट्रेनिंग भी इस तरह की नहीं होती कि ये अपने व्यवहारिक अनुभवों से अवधारणा या विचार विकसित कर सकें या उन्हें व्यवहार में बदल सकें।
पब्लिक सेक्टर की स्वास्थ्य सेवाएं ही जनता के बड़े हिस्से की स्वास्थ्य समस्याओं का जवाब हैं निजीकरण नहीं। प्राईवेट ढांचे की सीमाएं और मरीजों का शोषण हरियाणा की जनता सब जानती है। मौजूदा स्वास्थ्य परिस्थिति को पलटने तथा स्वास्थ्य को बढ़ावा देने वाली परिस्थितियां एवं स्वास्थ्य सेवाएं लागू करते हुए सबके लिए स्वास्थ्य के लिए निम्नलिखित बातों पर ध्यान जरुरी है ।
लोक वितरण प्रणाली को सार्वभौमिक बनाना जिसके तहत स्थानीय खाद्य पदार्थों को बढ़ावा दिया जाए। समस्त गावों व मोहल्लों में शुद्ध एवं सुरक्षित पेयजल की सार्वभौमिक उपलब्धता हो तथा हर गांव व मोहल्ले में स्वच्छ शौचालयों तक सार्वभौमिक पहुंच हो। जाति आधारित भेदभाव बुरे स्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण सामाजिक कारक है, पूर्णरुप से समाप्त करने हेतु त्वरित एवं प्रभावी कदम उठाये जाएं। मानव द्वारा मैला ढोने वाले समस्त मैनुअल कार्य पूर्ण रुप से प्रतिबन्धित हों। स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में इस भेदभाव से पीडि़त तबकों को प्राथमिकता दी जाए।
स्वास्थ्य के अधिकार का कानून लागू किया जाए जो कि समेकित, उच्चगुणवतापूर्ण, आसानी से उपलब्ध सेवाओं को सुनिश्चित करता हो तथा प्राथमिक, द्वितीय एवं तृतीय स्तरीय सेवायें आवश्यकतानुसार सबको उपलब्ध करवाता हो। सेवा प्रदाता को सेवाओं को उपलब्ध नहीं कराना या मना करना कानूनी अपराध घोषित किया जाए। समस्त स्वास्थ्य सुविधाओं में सेवाओं की गुणवता सुनिश्चित की जाए जिसके तहत स्वास्थ्य सेवाओं को प्रभावी, सुरक्षित, गैर शोषणीय बनायें तथा लोगों को सम्मानपूर्वक सेवायें उपलब्ध हों।
स्वास्थ्य सेवाओं में कार्यरत सभी कर्मचारियों की बेहतरीन शिक्षा एवं प्रशिक्षण के लिए सार्वजनिक निवेश को बढ़ाया जाए। चिकित्सा तथा संबन्धित क्षेत्र के उच्च शिक्षा व्यवस्था के वाणिज्यिकरण बंद हो तथा निजी शिक्षण संस्थाओं के व्यवस्थित नियन्त्रण हेतु प्रभावी तन्त्र लागू किया जाए। स्वास्थ्य प्रणाली में समस्त सेवाओं के लिए आवश्यक सभी पद एवं स्थान प्रर्याप्त रुप से सृजित किये जाएं एवं इन पदों को समय समय पर भरा जाये।
. समस्त स्वास्थ्य सुविधाओं में जेनेरिक दवाओं के प्रिस्क्रिप्शन एवं उपयोग को अनिवार्य करार दिया जाये। सभी मानसिक रुप से पीडि़त मरीजों को स्वास्थ्य सेवाएं एवं रक्षा सुनिश्चित की जाये। सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर एक सर्जन, एक फिजिसियन, एक शिशु रोग विशेषज्ञ व एक महिला रोग विशेषज्ञ के प्रावधान के मानक केन्द्रीय स्वास्थ्य विभाग द्वारा तय किये गए हैं। इसके साथ यदि मरीज बेहोशी का विशेषज्ञ नहीं है तो सर्जन और गायनकॉलोजिस्ट तो अपंग हो जाते हैं। इसलिए इन पांचों विशेषज्ञों की नियुक्तियां प्रत्येक सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में की जाए।
स्रोतः सं. सुभाष चंद्र, देस हरियाणा ( नवम्बर 2016 से फरवरी 2017, अंक 8-9) पेज-64-65