ग़ज़ल
जब कहा मैंने कुछ हिसाब तो दे।
क्यों फ़रिश्तों की झुक गई आँखें।।
इतने ख़ामोश क्यों हैं शहर के लोग।
कुछ तो पूछें, कोई तो बात करें॥
अजनबी शहर और रात का वक़्त।
अब सदा दें तो हम किसको दें॥
कौन आता है इतनी रात गए।
अब तो दरवाज़ा उठ के बंद करें॥
बहस चारागरों से क्या, लेकिन।
सिर्फ़ इतना है मुझको जाने दे॥
एक लम्हा फ़सील पर ‘आबिद’।
कब तलक़ शहर का तवाफ़ करे॥