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तरसा होगा वो जि़ंदगी के लिए – डा. सुभाष सैनी

Post Views: 148 ग़ज़ल तरसा होगा वो जि़ंदगी के लिए जिस ने सोचा है खुदकुशी के लिए दुश्मनी क्यों किसी से की जाए जि़ंंदगी तो है दोस्ती के लिए देखकर

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सीढ़ी -हरभजन सिंंह रेणु

Post Views: 534 कविता मनुष्य जीवनभर तलाशता है सीढ़ी ताकि छू सके कोई ऊंची चोटी एक ऊंचाई के बाद तलाशता है दूसरी सीढ़ी औ’ हर ऊंचाई के बाद नकारता है

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चिड़िया – बी मदन मोहन

Post Views: 891 बाल कविता चिड़िया मेरे घर की छत पर रोज फुदकती है रुक-रुक अपनी भाषा में जाने क्या बोला करती है टुक-टुक। उसकी बोली को सुन-सुनकर नन्हें चूजे

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प्यार का पैगाम – महेंद्र  सिंह 'फकीर’

Post Views: 475 गीत धरती पर फैला दो, ये प्यार का पैगाम लव तो लव है इसमें, जेहाद का क्या काम ऐ जवानों करो बगावत इस माहौल के खिलाफ मानवता

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तीन मंत्र – भूप सिंह ‘भारती’

Post Views: 559 कविता एक रात सपने में मेरे, ‘बाबा साहेब’ आये। दासता से मुक्ति के, मंत्र तीन बताये। पहला मंत्र बड़ा सरल, शिक्षा की तुम करो पहल, शिक्षित बन

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 क्या यही सभ्यता है?- सिद्दीक़ अहमद मेव

Post Views: 540 कविता तड़पता हुआ बचपन, आसमान से बरसती आग, चीथड़ों में बदलते इन्सान, क्या यही सभ्यता है? चीखता हुआ बचपन, पैराशूट से उतरती मौत, अंग भंग हुई तड़पती

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रास्सा – अनुराधा बेनीवाल

Post Views: 543 कविता कंठी ना चाहंदी, खेत चहिये तीळ ना चाहंदी, रेत चहिये घर भी मैं आपे बणा ल्यूंगी माँ-बाबू तेरा हेज चहिये। दूस्सर नहीं, मेरी किताब जोड़ ले

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किसको वतन कहूंगा? – संतराम उदासी

Post Views: 170 किसको वतन कहूंगा? हर जगह लहूलुहान है धरती हर जगह कब्रों -सी चुप पसरी अमन कहा मैं दफऩ करूँगा मैं अब किसको वतन कहूँगा तोड़ डाली नानक

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पंछी भर इक नई परवाज़ – संतराम उदासी

Post Views: 194 पंछी भर इक नई परवाज़ भर इक नई परवाज़ पंछी! भर इक नई परवाज़ जितने छोटे पंख हैं तेरे उतने लम्बे राह हैं तेरे तेरी राहों में

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मनीषा मणि

Post Views: 154 कविता बदबू किस ओर चला जा रहा है जीवन, निरर्थक व्यर्थ लाचार क्यों चेतना बांझ हो गई और हो गई है अपंग मस्तिष्क में कूब निकल आया

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