निराला : रचना सौष्ठव
इस दृश्य के अनुरूप रचना कल्याणकारिणी होनी चाहिए। फूलों की अनेक सुगन्धों की तरह कल्याण के भी रूप हैं। साहित्यिक को यहाँ देश और काल का उत्तम निरूपण कर लेना चाहिए। समष्टि की एक माँग होती है। वह एक समूह की माँग से बड़ी है। साहित्यिक यदि किसी समूह के अनुसार चलता है, तो वह उच्चता नहीं प्राप्त कर सकता, जो समष्टि को लेकर चलता है। … Continue readingनिराला : रचना सौष्ठव