Tag: साहित्य विमर्श

श्री करतारपुर साहब (पाकिस्तान) की यात्रा – सुरेंद्र पाल सिंह

Post Views: 45 जन्म – 12 नवंबर 1960 शिक्षा – स्नातक – कृषि विज्ञान स्नातकोतर – समाजशास्त्र सेवा – स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से सेवानिवृत लेखन – सम सामयिक मुद्दों

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राम-रहीम हथकरघा – सुशील स्वतंत्र

Post Views: 37 दिल्ली की झुग्गी बस्तियों में काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता से साप्ताहिक अखबार का संपादक और फिर लेखक बनें सुशील विभिन्न विधाओं में लेखन करते हैं। 1978

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हिंदी कथा साहित्य के आईने में विकलांग विमर्श- डॉ. सुनील कुमार

Post Views: 239 साहित्य व समाजशास्स्त्री ,दलित और जनजाति विमर्श के बाद 21वीं सदी के प्रथम दशक की दस्तक के रूप में विकलांग विमर्श स्थापित हो रहा है । वैश्विक

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Savi Savarkar, ‘Untouchables’

पाँच कविताएँ – विनोद कुमार

Post Views: 246 विनोद कुमार ने हाल ही में हिंदी साहित्य में अपना एम.ए. पूरा किया है। दलित साहित्य के पठन – लेखन में विशेष रूचि है। जाति व्यवस्था के

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‘1947’ उपन्यास पर समीक्षात्मक टिप्पणी – नरेश कुमार

नरेश कुमार कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में शोधार्थी हैं। मानवीय संवेदना को गहरे स्तर पर प्रभावित करने वाले गद्य साहित्य में विशेष रूचि है।हाल ही में परमानन्द शास्त्री ने विभाजन की त्रासदी को सूक्ष्म स्तर पर अभिव्यक्त करने वाले परगट सिंह सतौज के उपन्यास ‘1947’ का हिंदी में अनुवाद किया है। उसकी समीक्षा नरेश कुमार ने प्रस्तुत की है- … Continue reading‘1947’ उपन्यास पर समीक्षात्मक टिप्पणी – नरेश कुमार

भाषा, इतिहास और अंतर्विरोध – आचार्य रामस्वरूप चतुर्वेदी

प्रस्तुत आलेख आचार्य चतुर्वेदी कृत ‘हिंदी साहित्य और संवेदना के विकास’ के आरंभिक भाग से साभार लिया गया है।भारतीय इतिहास में व्यापक स्तर पर व्याप्त अंतर्विरोधों को समग्रता से समझते हुए ही उसके भाषा-साहित्य को उदारता से आत्मसात किया जा सकता है। आचार्य चतुर्वेदी का यह आलेख जीवन में अंतर्विरोधों को धारण करने के महत्त्व को रेखांकित कर रहा है- … Continue readingभाषा, इतिहास और अंतर्विरोध – आचार्य रामस्वरूप चतुर्वेदी

‘बुद्ध होते तो कहते’ -योगेश

Post Views: 90 मेरे दोस्त प्रायः मुझे कहते थे कि तुम बातचीत भी ठिकाने की कर लेते हो और  तुम्हारा दाखिला भी हो गया है पीएचडी की डिग्री के लिए

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बड़े भाई साहब – प्रेमचंद

Post Views: 38 मेरे भाई साहब मुझसे पाँच साल बड़े थे, लेकिन केवल तीन दरजे आगे। उन्होंने भी उसी उम्र में पढ़ना शुरू किया था जब मैने शुरू किया था;

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मैं ही अवाम, जनसमूह – कार्ल सैंडबर्ग, अनुवाद- दीपक वोहरा

Post Views: 44 मैं ही अवाम – जनसैलाब मैं ही हुजूम ख़ल्क़-ए-ख़ुदा1 क्या आपको मालूम है कि दुनिया के श्रेष्ठ काम मेरे द्वारा हुए हैं? मैं ही मज़दूर , मैं

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थर्ड जेंडर विमर्श : एक पड़ताल- डॉ. सुनील दत्त

वर्तमान दौर में दलित विमर्श, वृद्ध विमर्श, किसान विमर्श, स्त्री विमर्श, और थर्ड जेंडर विमर्श की खूब चर्चा रही है। प्रत्येक विमर्श मानव अधिकारों की मांग करता है और समाज से अपना मानव होने के हक की मांग करता है। इन्हीं विमर्शों में थर्ड जेंडर विमर्श भी मानव से मानव अधिकारों की मांग करता है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी इनकी मांगों को उचित मानते हुए थर्ड जेंडर की मान्यता दी है। थर्ड जेंडर ने सौंपे  गए दायित्वों को भी बखूबी से निभाया है। यह इस बात का प्रमाण है कि थर्ड जेंडर किसी भी दृष्टि से अन्य वर्ग से प्रतिभा में रत्ती भर भी कम नहीं है। शबनम मौसी, कमला जान, मधु किन्नर, लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी, आशा देवी आदि थर्ड जेंडर इसके उदाहरण हैं। अब आवश्यकता है समाज के सकारात्मक दृष्टिकोण की जिससे थर्ड जेंडर को मानव जीवन के अधिकारों से वंचित होने से बचाया जा सके। प्रस्तुत है डॉ. सुनील दत्त का लेख- … Continue readingथर्ड जेंडर विमर्श : एक पड़ताल- डॉ. सुनील दत्त