Tag: मुक्तिबोध

एक रग का राग – गजानन माधव मुक्तिबोध

Post Views: 216 ज़माने की वक़त और बेवक़तधड़कती धुकधुकीनाड़ियाँ फड़कती देखकरखुश हुए हम किबगासी और उमस के स्वेद मेंभीगी हुई उकताहट-उचाट खत्म हुईऔर कुछ ज़ोरदारसनसनीखेज कुछ,गरम-गरम चाय के साथ-साथमिल गई

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भूल-गलती – गजानन माधव मुक्तिबोध

Post Views: 203 भूल-गलतीआज बैठी है जिरहबख्तर पहनकरतख्त पर दिल के;चमकते हैं खड़े हथियार उसके दूर तक,आँखें चिलकती हैं नुकीले तेज पत्थर सी,खड़ी हैं सिर झुकाए         

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गजानन माधव मुक्तिबोध : आत्मान्वेषी विलक्षण मार्क्सवादी आलोचक – डॉ. अमरनाथ

“हिंदी के आलोचक” शृंखला में कलकत्ता विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर और हिन्दी विभागाध्यक्ष डा. अमरनाथ ने 50 से अधिक हिंदी-आलोचकों के अवदान को रेखांकित करते हुए उनकी आलोचना दृष्टि के विशिष्ट बिंदुओं को उद्घाटित किया है। इन आलोचकों पर यह अद्भुत सामग्री यहां प्रस्तुत है। इस शृंखला को आप यहां पढ़ सकते हैं। … Continue readingगजानन माधव मुक्तिबोध : आत्मान्वेषी विलक्षण मार्क्सवादी आलोचक – डॉ. अमरनाथ

पूंजीवादी समाज के प्रति – गजानन माधव मुक्तिबोध

Post Views: 163 इतने प्राण, इतने हाथ, इनती बुद्धिइतना ज्ञान, संस्कृति और अंतःशुद्धिइतना दिव्य, इतना भव्य, इतनी शक्तियह सौंदर्य, वह वैचित्र्य, ईश्वर-भक्तिइतना काव्य, इतने शब्द, इतने छंद –जितना ढोंग, जितना

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बूढ़ासागर की पथरीली पटरियों पर: एक संस्मरण – कनक तिवारी

दिग्विजय महाविद्यालय के परिसर में अपने जिस पहले मकान में वे रहे थे, ठीक उसके पीछे बूढ़ासागर की पथरीली पटरियों पर बैठकर उस वक्त के शीर्षक ‘आशंका के द्वीपः अंधेरे में‘ वाली कविता का एकल श्रोता बनना मेरे नसीब में आया। (पोस्ट से) … Continue readingबूढ़ासागर की पथरीली पटरियों पर: एक संस्मरण – कनक तिवारी

जन-जन का चेहरा एक- गजानन माधव मुक्तिबोध

Post Views: 463 चाहे जिस देश, प्रान्त, पुर का हो जन-जन का चेहरा एक! एशिया की, यूरोप की, अमरीका की गलियों की धूप एक। कष्ट-दुख सन्ताप की, चेहरों पर पड़ी

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मुक्तिबोध के जन्म शताब्दी अवसर पर एक काव्य-गोष्ठी

Post Views: 302                 22 अगस्त को कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय की आर्टस फैक्लटी में टीम देस हरियाणा ने गजानन माधव मुक्तिबोध के जन्म शताब्दी अवसर पर एक काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया

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जनवादी कविता की विरासत-डा. ओमप्रकाश ग्रेवाल

Post Views: 2,442 हिन्दी में आठवें दशक के दौरान जनवादी कविता का स्वर ही प्रमुख रहा है, कई नए हस्ताक्षर इधर जनवादी कविता के क्षेत्र में उभर कर आए हैं,

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