प्रसाद : जैसा मैंने पाया – अमृतलाल नागर
Post Views: 27 प्रसादजी से मेरा केवल बौद्धिक संबंध ही नहीं, हृदय का नाता भी जुड़ा हुआ है। महाकवि के चरणों में बैठकर साहित्य के संस्कार भी पाए हैं और
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Post Views: 38 चिन्ता करता हूँ मैं जितनी उस अतीत की, उस सुख की: उतनी ही अनन्त में बनती, जातीं रेखाएँ दुख की। आह सर्ग के अग्रदूत! तुम असफल हुए,
Post Views: 25 बीती विभावरी जाग री। अम्बर-पनघट पर डुबो रही तारा-घट ऊषा नागरी। खग कुल कुल-कुल-सा बोल रहा, किसलय का अंचल डोल रहा। लो यह लतिका भी भर लाई
Post Views: 52 अरुण यह मधुमय देश हमारा! जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा । सरस तामरस गर्भ विभा पर-नाच रही तरुशिखा मनोहर। छिटका जीवन हरियाली पर-मंगल कुंकम
‘आकाशदीप’ जयशंकर प्रसाद की बहुचर्चित कहानी है. यह कहानी ‘आकशदीप’ नामक कहानी संग्रह में संकलित है जिसका प्रकाशन सन् 1929 में हुआ था. कहानी की नायिका चम्पा को अपने पिता के हत्या के आरोपी बुधगुप्त से ही प्रेम हो जाता है. इस कहानी में प्रसाद जी ने कर्तव्य और प्रेम के मध्य अंतर्द्वन्द्व को चित्रित किया है. … Continue readingआकशदीप- जयशंकर प्रसाद