चिन्ता-जयशंकर प्रसाद
Post Views: 38 चिन्ता करता हूँ मैं जितनी उस अतीत की, उस सुख की: उतनी ही अनन्त में बनती, जातीं रेखाएँ दुख की। आह सर्ग के अग्रदूत! तुम असफल हुए,
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