ऐसे अपनी दुआ क़ुबूल हुई-बलबीर सिंह राठी
Post Views: 230 ग़ज़ल ऐसे अपनी दुआ क़ुबूल हुई,राह तक मिल सकी न मंजि़ल की,कारवाँ से बिछडऩे वालों को,उन की मंजि़ल कभी नहीं मिलती।खो गई नफ़रतों के सहरा1 में,प्यार की
Post Views: 230 ग़ज़ल ऐसे अपनी दुआ क़ुबूल हुई,राह तक मिल सकी न मंजि़ल की,कारवाँ से बिछडऩे वालों को,उन की मंजि़ल कभी नहीं मिलती।खो गई नफ़रतों के सहरा1 में,प्यार की
Post Views: 248 ग़ज़ल ये अलग बात बच गई कश्ती,वरना साजि़श भंवर ने ख़ूब रची। कह गई कुछ वो बोलती आँखें,चौंक उट्ठी किसी की ख़ामोशी। हम तो लड़ते रहे दरिन्दों
Post Views: 192 ग़ज़ल पहले कोई ज़ुबाँ तलाश करूँ,फिर नई शोखियाँ1 तलाश करूँ।अपने ख्वाबों की वुसअतों2 के लिए,मैं नये आसमां तलाश करूँ।मंजि़लों की तलाश में निकलूँ,मुस्तकिल3 इम्तिहाँ तलाश करूँ।मेरी आवारगी
Post Views: 150 ग़ज़ल कौन बस्ती में मोजिज़ा गर है, हौंसला किस में मुझ से बढ़ कर है। चैन से बैठने नहीं देता, मुझ में बिफरा हुआ समन्दर है।
Continue readingकौन बस्ती में मोजिज़ा गर है -बलबीर सिंह राठी
Post Views: 197 ग़ज़ल कौन कहता है कि तुझको हर खुशी मिल जाएगी, हां मगर इस राह में मंजि़ल नई मिल जाएगी। अपनी राहों में अंधेरा तो यक़ीनन है मगर,
Continue readingकौन कहता है कि तुझको हर खुशी मिल जाएगी- बलबीर सिंह राठी
Post Views: 203 ग़ज़ल जिनकी नज़रों में थे रास्ते और भी, जाने क्यों वो भटकते गये और भी। मैं ही वाक़िफ़ था राहों के हर मोड़ से, मैं जिधर भी
Continue readingजिनकी नज़रों में थे रास्ते और भी- बलबीर सिंह राठी
Post Views: 302 ग़ज़ल कैसी लाचारी का आलम है यहाँ चारों तरफ़, फैलता जाता है ज़हरीला धुआं चारों तरफ़। जिन पहाड़ों को बना आए थे हम आतिश फ़शां1, अब इन्हीं
Continue readingकैसी लाचारी का आलम है यहाँ चारों तरफ़ – बलबीर सिंह राठी
Post Views: 202 ग़ज़ल जो भी लड़ता रहा हर किसी के लिये, कुछ न कुछ कर गया आदमी के लिये। जो अंधेरे मिटाने को बेताब था, ख़ुद फ़रोज़ां1 हुआ रोशनी
Continue readingजो भी लड़ता रहा हर किसी के लिये – बलबीर सिंह राठी
Post Views: 199 ग़ज़ल करें उम्मीद क्या उस राहबर से, जो लौट आया हो मुश्किल रहगुज़र से, जो लगते थे बड़े ही मअतबर1 से, वो कैसे गिर गये मेरी
Continue readingकरें उम्मीद क्या उस राहबर से – बलबीर सिंह राठी
Post Views: 123 ग़ज़ल मुहब्बत से जुनूँ की दास्ताँ तक आ गया हूँ मैं, किसी के इश्क में देखो कहाँ तक आ गया हूँ मैं। ये राहें ख़ुद-बख़ुद कैसे मुनव्वर1
Continue readingमुहब्बत से जुनूँ की दास्ताँ तक आ गया हूँ मैं – बलबीर सिंह राठी