ख़ला से भी कभी उभरा है ज़िन्दग़ी का वजूदतेरी निगाह कहाँ टकराई है दीवाने!तेरे दिमाग़, तेरे ज़हन पर मसलत हैहसीन उम्रगेज़ सत्ता के चन्द अफ़सानेहवा का झौंक था, टकराया दर
ख़ला से भी कभी उभरा है ज़िन्दग़ी का वजूदतेरी निगाह कहाँ टकराई है दीवाने!तेरे दिमाग़, तेरे ज़हन पर मसलत हैहसीन उम्रगेज़ सत्ता के चन्द अफ़सानेहवा का झौंक था, टकराया दर