बुद्धिजीवी बहुत थोड़े में संतुष्ट हो जाता है। उसे पहले दर्जे का किराया दे दो ताकि वह तीसरे में सफर करके पैसा बचा ले। एकाध माला पहना दो, कुछ श्रोता
बुद्धिजीवी बहुत थोड़े में संतुष्ट हो जाता है। उसे पहले दर्जे का किराया दे दो ताकि वह तीसरे में सफर करके पैसा बचा ले। एकाध माला पहना दो, कुछ श्रोता
अशोक भाटिया ने लम्बे समय तक हरियाणा के करनाल जिले के कॉलेज में हिंदी का अध्ययन- अध्यापन का काम किया। वर्तमान में सेवानिवृत हैं और हिंदी कविता, कहानी और आलोचना के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होनें इधर की हिंदी लघुकथा को विकसित-प्रचारित और प्रसारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस सम्बन्ध में इनकी कई महत्वपूर्ण पुस्तकें हाल-फिलहाल में प्रकाशित हुई हैं।
भोपाल के हमीदिया अस्पताल में मुक्तिबोध जब मौत से जूझ रहे थे, तब उस छटपटाहट को देखकर मोहम्मद अली ताज ने कहा था – उम्र भर जी के भी न जीने का अन्दाज आयाजिन्दगी छोड़ दे पीछा मेरा मैं बाज आया जो मुक्तिबोध को निकट से
फूहड़पन के लिए भी हैसियत चाहिए। मेरी हैसियत नहीं है तो लालाजी के बेटों पर हँस रहा हूँ। पैसा और फूहड़पन दोनों आ जाए तो मैं गहरा रंग खरीदकर चेहरे को रँगवा लूँ-एक गाल पीला, दूसरा लाल नाक हरी, कपाल नीला।। (लेख से )
मेरे दोस्त के आँगन में इस साल बैंगन फल आए हैं। पिछले कई सालों से सपाट पड़े आँगन में जब बैंगन का फल उठा तो ऐसी खुशी हुई जैसे बाँझ
निंदा कुछ लोगों की पूंजी होती है। बड़ा लंबा-चौड़ा व्यापार फैलाते हैं वे इस पूंजी से। कई लोगों की ‘रिस्पेक्टेबिलिटी’ (प्रतिष्ठा) ही दूसरों की कलंक-कथाओं के पारायण पर आधारित होती