Post Views: 25 भोपाल के हमीदिया अस्पताल में मुक्तिबोध जब मौत से जूझ रहे थे, तब उस छटपटाहट को देखकर मोहम्मद अली ताज ने कहा था – उम्र भर जी के भी न जीने का अन्दाज आयाजिन्दगी छोड़ दे पीछा मेरा मैं बाज आया जो मुक्तिबोध…
अपनी-अपनी हैसियत- हरिशंकर परसाई
फूहड़पन के लिए भी हैसियत चाहिए। मेरी हैसियत नहीं है तो लालाजी के बेटों पर हँस रहा हूँ। पैसा और फूहड़पन दोनों आ जाए तो मैं गहरा रंग खरीदकर चेहरे को रँगवा लूँ-एक गाल पीला, दूसरा लाल नाक हरी, कपाल नीला।। (लेख से )
आँगन में बैंगन – हरिशंकर परसाई
Post Views: 15 मेरे दोस्त के आँगन में इस साल बैंगन फल आए हैं। पिछले कई सालों से सपाट पड़े आँगन में जब बैंगन का फल उठा तो ऐसी खुशी…

निंदा-रस – हरिशंकर परसाई
Post Views: 30 निंदा कुछ लोगों की पूंजी होती है। बड़ा लंबा-चौड़ा व्यापार फैलाते हैं वे इस पूंजी से। कई लोगों की ‘रिस्पेक्टेबिलिटी’ (प्रतिष्ठा) ही दूसरों की कलंक-कथाओं के पारायण…
निंदा रस – हरिशंकर परसाई
Post Views: 284 व्यंग्य क’ कई महीने बाद आए थे। सुबह चाय पीकर अखबार देख रहा था कि वे तूफान की तरह कमरे में घुसे, साइक्लोन जैसा मुझे भुजाओं में…