Post Views: 314 वा राजा की राजकुमारी मैं सिर्फ लंगोटे आळा सूंभांग रगड़ कै पीवणियां मैं कुण्डी सोट्टे आळा सूं उसकी सौ सौ टहल करैं आड़ै एक भी दासी दास…
हरियाणा में रागनी की परम्परा और जनवादी रागनी की शुरुआत – डा. ओमप्रकाश ग्रेवाल
रागनी की असली जान, ठेठ लोकभाषा के मुहावरों में सीधी-सादी लय अपनाने में और ऐसे मर्म-स्पर्शी कथा प्रसंगों के चुनाव में होती हैं ” जो लोगों के मन में रच-बस गये हों। इन सबके सहारे ही रागनी लोगों की भावनाओं को, उनकी पीड़ाओं तथा दबी हुई अभिलाषाओं को सुगम और सरल ढंग से प्रस्तुत करने में सफल होती हैं।