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वैदिक समुदाय और स्त्री- मुद्राराक्षस

इन्द्र की स्तुति वैदिक समाज के अनेक लोग स्त्री पाने के लिए ही करते हैं। तवं र पिठीनसे मंत्र (म. 6, सू. 26) में है— हे इन्द्र ! पिठीनस को रजि नाम की स्त्री तुमने दी। मं. 10 के सू. 65 के मुन्युमंहसः मंत्र में अश्विनी द्वय ने विमद को सुन्दर स्त्री दी, यह प्रशंसा है। मं. 1, सू. 69 के अयं सोमः मंत्र में सोम से प्रार्थना की गई है, हमें रमणीय स्त्री दिलाओ। (लेख से)

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पथ की साथी सुभद्राकुमारी चौहान – महादेवी वर्मा

Post Views: 197 हमारे शैशवकालीन अतीत और प्रत्यक्ष वर्तमान के बीच में समय- प्रवाह का पाठ ज्यों-ज्यों चौड़ा होता जाता है त्यों-त्यों हमारी स्मृति में अनजाने ही एक परिवर्तन लक्षित…

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इंदिरा गाँधी : अटल की ‘दुर्गा’

सिफ़ारिश की गई थी कि सभी सिख सुरक्षाकर्मियों को उनके निवास स्थान से हटा लिया जाए। लेकिन जब वह फ़ाइल इंदिरा गाँधी के सामने रखी गई तो उन्होंने उसे अस्वीकार करते हुए बहुत ग़ुस्से में उस पर लिखा था, “आर नॉट वी सेकुलर?

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निर्मला जैन : आलोचना में पुरुष वर्चस्व को पहली चुनौती – अमरनाथ

“हिंदी के आलोचक” शृंखला में कलकत्ता विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर और हिन्दी विभागाध्यक्ष डा. अमरनाथ ने 50 से अधिक हिंदी-आलोचकों के अवदान को रेखांकित करते हुए उनकी आलोचना दृष्टि के विशिष्ट बिंदुओं को उद्घाटित किया है। इन आलोचकों पर यह अद्भुत सामग्री यहां प्रस्तुत है। इस शृंखला को आप यहां पढ़ सकते हैं।

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भारत की पहली शिक्षिका – माता सावित्रीबाई फुले

दिनांक 03-01-2019 को जोतिबा-सावित्री बाई फुले पुस्तकालय, सैनी समाज भवन, कुरूक्षेत्र में माता सावित्री बाई फुले के जन्मोत्सव पर सत्य शोधक फाउंडेशन की ओर से एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें देस हरियाणा के संपादक और कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग प्रोफेसर डॉ. सुभाषचन्द्र द्वारा लिखित सावित्री बाई फुले के जीवन और चिंतन पर केन्द्रित पुस्तक ‘भारत की पहली शिक्षिका माता सावित्रीबाई फुले’ का विमोचन किया गया।

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भारत की पहली शिक्षिका सावित्रीबाई फुले – सुभाष चंद्र

भारत की पहली शिक्षिका सावित्रीबाई फुले ने भारतीय समाज में मौजूद धर्मभेद, वर्णभेद, जातिभेद, लिंगभेद के खिलाफ कार्य किया। वे जैविक बुद्धिजीवी थी, जिन्होंने अपने अनुभवों से ही अपने जीवन-दर्शन का निर्माण किया। सावित्रीबाई फुले ने समाज में सत्य, न्याय, समानता, स्वतंत्रता और मानव भाईचारे की स्थापना के लिए अनेक क्रांतिकारी कदम उठाए।

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देखे मर्द नकारे हों सैं गरज-गरज के प्यारे हों सैं – पं. लख्मीचंद

बात सही है कि लोक कवि लोक बुद्धिमता, प्रवृतियों और बौद्धिक-नैतिक रुझानों का अतिक्रमण नहीं कर पाते। लेकिन लोक प्रचलित मत की सीमाओं का अतिक्रमण करना भी अपवाद नहीं है।इसका उदाहरण है पं. लख्मीचंद  की ये  रागनी जिसमें पौराणिक किस्सों में पुरुषों ने स्त्रियों के प्रति जो अन्याय किया उसे एक जगह रख दिया है और वो भी स्त्री की नजर से.

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जाति प्रथा से भीषण है लैंगिक विषमता – तस्लीमा नसरीन

धार्मिक कट्टरवाद तो पहले से ही दुनिया के अनेक देशों में है। अब भारत में भी धर्म को ज्यादा महत्व दिया जाने लगा है। जब कि इतिहास गवाह है कि जहां-जहां धार्मिक कट्टरवाद को बढ़ावा मिलता है, वहां वहां समाज के कमजोर वर्गों, जैसे निचली जातियों और महिलाओं, का शोषण और बढ़ जाता है।

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अन्तराष्ट्रीय-महिला दिवस का इतिहास – प्रोफेसर सुभाष सैनी

Post Views: 173   अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस हर वर्ष, 8 मार्च को मनाया जाता है। ये आइडिया एक औरत का ही था. क्लारा ज़ेटकिन ने 1910 में कोपेनहेगन में कामकाजी…

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8 मार्च – अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का इतिहास

Post Views: 453 – सोनी सिंह 8 मार्च अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस दुनिया भर में हर साल मनाया जाता है। यह महिलाओं की आर्थिक, राजनीतिक और सामजिक उपलब्धियों के उपलक्ष्य त्यौहार…