बिरादरी को गोली मारो – रोहतास

                  सेठ त्रिलोकचंद बंसल टूथपेस्ट के झाग कम, थूक ज्यादा उगल रहा है।                 अंधेरा आकाश से समाप्त हो…

आधुनिकता – सुशीला बहबलपुर

कविता जिन माओं ने नहीं उठाये ये किताबों से भरे बैग कभी। आज सौभाग्यवश उन्हीें माओं को। मिला है मौका…

नए रास्ते – सुशीला बहबलपुर

कविता मैंने चुने हैं कुछ ऐसे रास्ते जिनमें रीसते हैं रिश्ते परम्परा से अलग नई परम्परा के कुछ से भिन्न…

पीड़ा का सन्तोष – सुशीला बहबलपुर

कविता पीड़ाओं में जो पैदा हुए पीड़ाओं में जिनका बचपन गुजरा पीड़ाओं में ही रखे जिसने जवानी की दहलीज पर…