नामवर सिंह ने जब हिन्दी समीक्षा में पदार्पण किया तो वह समय न केवल हिन्दी रचना व आलोचना के लिए महत्त्वपूर्ण था, बल्कि दर्शन व साहित्य के क्षेत्र में पूरी दुनिया में गर्मागर्म बहस छिड़ी हुई थी। नामवर सिंह को उस परम्परा में भी संघर्ष करना पड़ा, जिसको वे आगे बढ़ाना चाहते थे और इसके विरोधियों से तो टक्कर लेने के लिए वे मैदान में उतरे ही थे। (लेख से )
मानवीय संवेदना व जिजीविषा हमेशा ज़िंदा रहती है – सुभाष चंद्र
पुरानी होने से ही न तो सभी वस्तुएँ अच्छी होती हैं और न नयी होने से बुरी तथा हेय।विवेकशील व्यक्ति अपनी बुद्धि से परीक्षा करके श्रेष्ठकर वस्तु को अंगीकार कर लेते हैं और मूर्ख लोग दूसरों द्वारा बताने पर ग्राह्य अथवा अग्राह्य का निर्णय करते हैं।
शिक्षा जिंदगी का गेम चेंजर – सुभाष चंद्र
सावित्रीबाई फुले जयंती 2 जनवरी 2020 को गांव बरसत जिला करनाल में सत्यशोधक फाउंडेशन व सृजन कला मंच, बरसत द्वारा आयोजित कार्यक्रम
महात्मा गांधीः धर्म और साम्प्रदायिकता – डा. सुभाष चंद्र
Post Views: 1,007 साम्प्रदायिकता आधुनिक युग की परिघटना है। अंग्रेजों ने भारत की शासन सत्ता संभाली तो राजनीति और आर्थिक व्यवस्था प्रतिस्पर्धात्मक हो गई। अंग्रेजी शासन में हिन्दुओं व मुसलमानों…
जनपक्षीय राजनीति का मार्ग प्रशस्त करें
Post Views: 386 सेवा देश दी जिंदड़िए बड़ी ओखी,गल्लां करणियां ढेर सुखल्लियां ने।जिन्नां देश सेवा विच पैर पाइयाउन्नां लख मुसीबतां झल्लियां ने। – करतार सिंह सराभा यह साल…
वैचारिक बहस को जन्म दे रही है देस हरियाणा’
Post Views: 363 विकास होग्या बहुत खुसी, गामां की तस्वीर बदलगीभाईचारा भी टूट्या सै, इब माणस की तासीर बदलगी -रामेश्वर गुप्ता पिछले दस-बारह सालों से ‘हरियाणा नं. 1’ की छवि…

सावित्रीबाई फुले : जीवन जिस पर अमल किया जाना चाहिए
Post Views: 471 7 जनवरी को दलित शोषण मुक्ति मंच (DSMM), दिल्ली ने भारत की पहली महिला शिक्षक सावित्रीबाई फुले की 187वें जन्मदिवस पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया …
कहानियों के बीच बोलता : तारा पांचाल
Post Views: 367 डा. सुभाष चंद्र हरियाणा के छोटे से पिछड़े कस्बे नरवाना (बकौल तारा पांचाल नरवाना कंट्री)में जन्मे तारा पांचाल एक कहानीकार के तौर पर पूरे देश में प्रतिष्ठित…
मंहगाई डायन खाए जात है -डा. सुभाष चंद्र
Post Views: 371 मंहगाई की प्राकृतिक आपदा या संकट नहीं है, बल्कि इसके पीछे निहित स्वार्थ हैं। वे स्वार्थ हैं अधिक से अधिक लाभ कमाने के। पूंजीवादी व्यवस्था लाभ पर…
हरियाणा के पचास सालः क्या खोया, क्या पाया – डा. सुभाष चंद्र
Post Views: 443 इनआमे-हरियाना हमें जिस रोज से हासिल हुआ इनआमे-हरियाना।बनारस की सुबह से खुशनुमा है शामे-हरियाना। न क्यों शादाब हो हर फ़र्दे-खासो आमे हरियाना।तयूरे-बाग़ भी लेते हैं जबकि नामे-हरियाना।…