Tag: साहित्य विमर्श

भाषा, इतिहास और अंतर्विरोध – आचार्य रामस्वरूप चतुर्वेदी

प्रस्तुत आलेख आचार्य चतुर्वेदी कृत ‘हिंदी साहित्य और संवेदना के विकास’ के आरंभिक भाग से साभार लिया गया है।भारतीय इतिहास में व्यापक स्तर पर व्याप्त अंतर्विरोधों को समग्रता से समझते हुए ही उसके भाषा-साहित्य को उदारता से आत्मसात किया जा सकता है। आचार्य चतुर्वेदी का यह आलेख जीवन में अंतर्विरोधों को धारण करने के महत्त्व को रेखांकित कर रहा है- … Continue readingभाषा, इतिहास और अंतर्विरोध – आचार्य रामस्वरूप चतुर्वेदी

‘बुद्ध होते तो कहते’ -योगेश

Post Views: 89 मेरे दोस्त प्रायः मुझे कहते थे कि तुम बातचीत भी ठिकाने की कर लेते हो और  तुम्हारा दाखिला भी हो गया है पीएचडी की डिग्री के लिए

Continue reading‘बुद्ध होते तो कहते’ -योगेश

बड़े भाई साहब – प्रेमचंद

Post Views: 38 मेरे भाई साहब मुझसे पाँच साल बड़े थे, लेकिन केवल तीन दरजे आगे। उन्होंने भी उसी उम्र में पढ़ना शुरू किया था जब मैने शुरू किया था;

Continue readingबड़े भाई साहब – प्रेमचंद

मैं ही अवाम, जनसमूह – कार्ल सैंडबर्ग, अनुवाद- दीपक वोहरा

Post Views: 43 मैं ही अवाम – जनसैलाब मैं ही हुजूम ख़ल्क़-ए-ख़ुदा1 क्या आपको मालूम है कि दुनिया के श्रेष्ठ काम मेरे द्वारा हुए हैं? मैं ही मज़दूर , मैं

Continue readingमैं ही अवाम, जनसमूह – कार्ल सैंडबर्ग, अनुवाद- दीपक वोहरा

थर्ड जेंडर विमर्श : एक पड़ताल- डॉ. सुनील दत्त

वर्तमान दौर में दलित विमर्श, वृद्ध विमर्श, किसान विमर्श, स्त्री विमर्श, और थर्ड जेंडर विमर्श की खूब चर्चा रही है। प्रत्येक विमर्श मानव अधिकारों की मांग करता है और समाज से अपना मानव होने के हक की मांग करता है। इन्हीं विमर्शों में थर्ड जेंडर विमर्श भी मानव से मानव अधिकारों की मांग करता है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी इनकी मांगों को उचित मानते हुए थर्ड जेंडर की मान्यता दी है। थर्ड जेंडर ने सौंपे  गए दायित्वों को भी बखूबी से निभाया है। यह इस बात का प्रमाण है कि थर्ड जेंडर किसी भी दृष्टि से अन्य वर्ग से प्रतिभा में रत्ती भर भी कम नहीं है। शबनम मौसी, कमला जान, मधु किन्नर, लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी, आशा देवी आदि थर्ड जेंडर इसके उदाहरण हैं। अब आवश्यकता है समाज के सकारात्मक दृष्टिकोण की जिससे थर्ड जेंडर को मानव जीवन के अधिकारों से वंचित होने से बचाया जा सके। प्रस्तुत है डॉ. सुनील दत्त का लेख- … Continue readingथर्ड जेंडर विमर्श : एक पड़ताल- डॉ. सुनील दत्त

प्रेमचंद ने पूछा था- “बिगाड़ के डर से क्या ईमान की बात न कहोगे ?”- डॉ. कृष्ण कुमार

डॉ. कृष्ण कुमार हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले के पलवल गाँव के राजकीय महाविद्यालय में हिंदी-अध्यापन में कर्यरत हैं। विशेष रूचि आलोचना में है। अपने इर्द गिर्द की साहित्यिक गतिविधियों में निरन्तर सक्रीय रहते हैं। … Continue readingप्रेमचंद ने पूछा था- “बिगाड़ के डर से क्या ईमान की बात न कहोगे ?”- डॉ. कृष्ण कुमार

समकालीन हिंदी उपन्यासों में अभिव्यक्त किन्नर संघर्ष-रामेश्वर महादेव वाढेकर

रामेश्वर महादेव वाढेकर का जन्म 20 मई, 1991 को महाराष्ट्र के जिला बीड के ग्राम सादोळा में हुआ। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में इनके शोधपरक आलेख निरंतर प्रकाशित होते रहते हैं। हाल फिलहाल हिंदी विषय में पीएच.डी. कर रहे हैं और साथ ही साथ सहायक प्राध्यापक के पद पर कार्यरत हैं। निचे दिए गए फोन नम्बर और ईमेल पते के जारी उनसे सम्पर्क किया जा सकता है-
फोन-9022561824
ईमेल:-rvadhekar@gmail.com
Continue readingसमकालीन हिंदी उपन्यासों में अभिव्यक्त किन्नर संघर्ष-रामेश्वर महादेव वाढेकर

सही मायनों में रचनाओं का मूल्यांकन होना अभी भी बाकी – अशोक भाटिया

अशोक भाटिया ने लम्बे समय तक हरियाणा के करनाल जिले के कॉलेज में हिंदी का अध्ययन- अध्यापन का काम किया। वर्तमान में सेवानिवृत हैं और हिंदी कविता, कहानी और आलोचना के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होनें इधर की हिंदी लघुकथा को विकसित-प्रचारित और प्रसारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस सम्बन्ध में इनकी कई महत्वपूर्ण पुस्तकें हाल-फिलहाल में प्रकाशित हुई हैं। … Continue readingसही मायनों में रचनाओं का मूल्यांकन होना अभी भी बाकी – अशोक भाटिया

कविताएँ – राजेश भारती

राजेश भारती हरियाणा के कैथल जिले के गाँव काकौत के रहने वाले हैं। अपने आस पास होने वाली अप्रिय-अमानवीय घटनाओं से वाकिफ रहते हैं । राजेश भारती की ये कविताएँ शोषितों-वंचितों, महिलाओं के हक़ की बात करती हैं और वर्तमान में देशभर में व्याप्त धार्मिक उन्माद और नफरत के विरोध में अपनी उपस्थिति दर्ज कराती हैं। प्रस्तुत हैं राजेश भारती की पांच कविताएँ- … Continue readingकविताएँ – राजेश भारती

दो पंक्तियों के बीच एक सघन अर्थ की खोज – योगेश शर्मा

योगेश शर्मा कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र के हिंदी विभाग में शोधार्थी हैं। आधुनिक हिंदी कविता को भाषा बोध और दर्शन के परिप्रेक्ष्य में देखने समझने में रूचि है। कविता को वर्तमान संदर्भों में देखने तथा नए दृष्टिकोण विकसित करने के लिए निरंतर प्रयासरत हैं। … Continue readingदो पंक्तियों के बीच एक सघन अर्थ की खोज – योगेश शर्मा