कौन समझ सकता था उसको, सारा खेल निराला था – बलबीर सिंह राठी
Post Views: 152 ग़ज़ल कौन समझ सकता था उसको, सारा खेल निराला था, घोर अंधेरों की बस्ती में चारों ओर…
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