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हरियाणा में रागनी की परम्परा और जनवादी रागनी की शुरुआत – डा. ओमप्रकाश ग्रेवाल

रागनी की असली जान, ठेठ लोकभाषा के मुहावरों में सीधी-सादी लय अपनाने में और ऐसे मर्म-स्पर्शी कथा प्रसंगों के चुनाव में होती हैं ” जो लोगों के मन में रच-बस गये हों। इन सबके सहारे ही रागनी लोगों की भावनाओं को, उनकी पीड़ाओं तथा दबी हुई अभिलाषाओं को सुगम और सरल ढंग से प्रस्तुत करने में सफल होती हैं।

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राजेन्द्र बड़गूजर – हरियाणा का लोक साहित्य : पचास साल

Post Views: 769 लोकधारा हरियाणा का लोक साहित्य एवं सांग परम्परा इस मायने में अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं कि यह मनोरंजन एवं  सामाजिक जीवन  की उठा-पटक एवं संघर्ष का दिग्दर्शन कराते…