ओमसिंह अशफाक सरबजीत (30-12-1961—13-12-1998) दोस्तों का बिछडऩा बड़ा कष्टदायक होता है। ज्यों-ज्यों हमारी उम्र बढ़ती जाती है पीड़ा सहने की शक्ति भी क्षीण होती रहती है। जवानी का जोश तो
ओमसिंह अशफाक सरबजीत (30-12-1961—13-12-1998) दोस्तों का बिछडऩा बड़ा कष्टदायक होता है। ज्यों-ज्यों हमारी उम्र बढ़ती जाती है पीड़ा सहने की शक्ति भी क्षीण होती रहती है। जवानी का जोश तो
ओम प्रकाश करुणेश (कथाकर व आलोचक सरबजीत की असामयिक मृत्यु पर लिखा गया संस्मरण) सरबजीत के साथ पहली मुलाकात ठीक ठाक से तो याद नहीं, पर खुली-आत्मीय भरी मुलाकातें…बाद तक भी
कविता बचना हरेक से बचना रास्ते के पत्थर और अंधेरे तो तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ेंगे यकीनन पर बचना बचना दु:ख और दूरी तो तुम भी सह लोगी बहादुर बचना बड़ा
कविता कुछ भी नहीं है नश्वर मेरे सिवा कलेवर जीवित रहेगा दिसम्बर के बाद फिर-फिर इस जगत का हर निर्जीव भी अनश्वर झूठे महात्माओं ज्योतिषियों, पाखण्डियों का अनश्वर है जगत्
कविता ये कैंसर अस्पताल के पेड़ हैं इन पर पत्ते भी हैं इनकी टहनियां भी लंबी हैं हवा चलने पर हिलते हैं ये सब पर इनकी हरकत में हंसी नहीं
कविता मुझे शहतूत चाहिए जल्लादी स्वप्नों का है संसार प्रोफेशनल डाक्टर करते मरीज का चैक-अप उन्नींदा डकार ले रहा है और यहां दर्द के जंगली झाड़ हिल रहे हैं चारों