कविता मस्तिष्क के किसी कोने में चिपके हैं कई प्रश्रचिन्ह और मैं उदास हूं भीड़ के पास हूं जो निरी तेज दर्द में लिपटी हुई रक्त के धब्बों से गले
कविता मस्तिष्क के किसी कोने में चिपके हैं कई प्रश्रचिन्ह और मैं उदास हूं भीड़ के पास हूं जो निरी तेज दर्द में लिपटी हुई रक्त के धब्बों से गले