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कविताJuly 9, 2019

 बाजरे की सीट्टियां पै खेत की मचाण पै चिड्ड़ियां की लुक-मिच्चणी संग खेल्या अर छुपग्या दिन। गोबर तैं लीपे आंगण म्ह हौळे हौळे आया दिन। टाबर ज्यूं खेल्या,हांस्या-रोया, खाया-पिया अर

कविताJanuary 9, 2019

संगीता बैनीवाल सारे दीखैं तोळा-मासा मैं तो बस रत्ती भर सूं माटी म्ह मिल ज्यां इक दिन माटी तैं फेर बण ज्यां सूं जितना नेह-तेल भरोगे उतनी राह रोशन कर

देसहरियाणा सामाजिक-सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का मंच

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