यात्रा adminदेस हरियाणा मेरे मन-पटल पर बचपन की जो सबसे पहली यात्रा अंकित है, वह बड़ी त्रासद और दुर्भाग्यपूर्ण है। वैसे तो बचपन की यात्राएं बाल-सुलभ उल्लास, उत्साह एवं उत्सुकता
यात्रा adminदेस हरियाणा मेरे मन-पटल पर बचपन की जो सबसे पहली यात्रा अंकित है, वह बड़ी त्रासद और दुर्भाग्यपूर्ण है। वैसे तो बचपन की यात्राएं बाल-सुलभ उल्लास, उत्साह एवं उत्सुकता
नरेश कुमार कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में शोधार्थी हैं। मानवीय संवेदना को गहरे स्तर पर प्रभावित करने वाले गद्य साहित्य में विशेष रूचि है।हाल ही में परमानन्द शास्त्री ने विभाजन की त्रासदी को सूक्ष्म स्तर पर अभिव्यक्त करने वाले परगट सिंह सतौज के उपन्यास '1947' का हिंदी में अनुवाद किया है। उसकी समीक्षा नरेश कुमार ने प्रस्तुत की है-
लोग समझते हैं सरदार जी मर गये। नहीं यह मेरी मौत थी। पुराने मैं की मौत। मेरे तअस्सुब (धर्मान्धता) की मौत। घृणा की मौत जो मेरे दिल में थी। मेरी
डब्ल्यू० एच० ऑडेन (1907-1973) अनुवाद – दिनेश दधीचि इतना तय है कि जब वह अपने मिशन के लिए पहुँचा, तो उसके दिल में कम-से-कम कोई पक्षपात या पूर्वाग्रह नहीं था, क्योंकि उसने
मोहन रमणीक 15 अगस्त का दिन हमारे लिए ख़ुशी का दिन है। मगर यह हमें उस ऐतिहासिक त्रासदी की भी याद दिलाता है जिसे हम मुल्क के बंटवारे या विभाजन