हरियाणवी कविता जद ताती-ताती लू चालैं नासां तैं चाली नकसीर ओबरे म्हं जा शरण लेंदे सिरहानै धरा कोरा घड़ा ल्हासी-राबड़ी पी कीं काळजे म्हं पड़दी ठंड एक कानीं बुखारी म्हं
हरियाणवी कविता जद ताती-ताती लू चालैं नासां तैं चाली नकसीर ओबरे म्हं जा शरण लेंदे सिरहानै धरा कोरा घड़ा ल्हासी-राबड़ी पी कीं काळजे म्हं पड़दी ठंड एक कानीं बुखारी म्हं
हरियाणवी कविता डाब कै म्हारे खेतां म्हं मूंग, मोठ लहरावे सै काचर, सिरटे और मतीरे धापली कै मन भावै सै रै देखो टिब्बे तळै क्यूकर झूमी बाजरी रै। बरसे सामण
हरियाणवी कविता म्हारी बुग्गी गाड्डी के पहिये लोहे के सैं जमां चपटे बिना हवा के जूए कै सेतीं जुड़ रहे सैं मण हामी इसे म्हं बैठ उरै ताईं पहोंच लिए
हरियाणवी कविता जी करै सै आज दादी की तिजोरी मैं तै काढ़ ल्याऊं सिर की सार,धूमर अर डांडे नाक की नाथ, पोलरा कान की बुजली, कोकरू अर डांडीये गळे की-नौलड़ी,गळसरी,
हरियाणवी कविता गोबर चुगणे नै गांव की छोरियां खेल समझैं तो बड़ी बात कोनी ऊपर ताईं गोबर भरा तांसळा खेल-खेल म्हं भर लिया काम का काम भी होग्या अर खेल
ज्ञान प्रकाश विवेक ज्ञान प्रकाश विवेक हरियाणा के प्रख्यात कथाकार हैं। उन्होंने नई कथा-भाषा का सृजन करते हुए कहानी को कलात्मक उच्चता प्रदान की है। अपने समय के यथार्थ की