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दायरे -विनोद सिल्ला
विनोद सिल्ला कविता कर लिए कायम दायरे सबने अपने-अपने हो गए आदि तंग दायरों के कितना सीमित कर लिया खुद…
जंगली कौन – विनोद सिल्ला
विनोद सिल्ला कितना भाग्यशाली था आदिमानव तब न कोई अगड़ा था न कोई पिछड़ा था हिन्दू-मुसलमान का न कोई झगड़ा…
लजीज खाना
विनोद सिल्ला कविता मैं जब कई दिनों बाद गया गाँव माँ ने अपने हाथों से बनाई रोटी कद्दू की बनाई…