All posts tagged in विनोद सिल्ला

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विनोद सिल्ला कविता कर लिए कायम दायरे सबने अपने-अपने हो गए आदि तंग दायरों के कितना सीमित कर लिया खुद को सबने नहीं देखा कभी दायरों को तोड़ कर अगर

देसहरियाणा सामाजिक-सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का मंच

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कविताJanuary 22, 2019

विनोद सिल्ला कितना भाग्यशाली था आदिमानव तब न कोई अगड़ा था न कोई पिछड़ा था हिन्दू-मुसलमान का न कोई झगड़ा था छूत-अछूत का न कोई मसला था अभावग्रस्त जीवन चाहे

कविताJanuary 15, 2019

विनोद सिल्ला कविता मैं जब कई दिनों बाद गया गाँव माँ ने अपने हाथों से बनाई रोटी कद्दू की बनाई मसाले रहित सब्जी रोटी पर रखा मक्खन लस्सी का भर

देसहरियाणा सामाजिक-सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का मंच

विनोद सिल्ला कविता तरक्की के दौर में गुम हो गया भाईचारा टूट गई स्नेह की तार व्यक्ति का नाम छिप गया सरनेम की आड़ में पड़ोसी हो गए प्रतिद्वंद्धी रिश्तेदार

देसहरियाणा सामाजिक-सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का मंच

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