लोक साहित्य में लोक जीवन का यथार्थ है, पीड़ा है, दुख है, मगर उस दुख और पीड़ा से जूझने का संकल्प भी है, मुठभेड़ करने का साहस भी है. यहां सादगी है, प्रेम है, निष्ठा है, ईमानदारी है और सुसंस्कार है. हमारे लोक साहित्य में लोक का जो उदात्त चरित्र चित्रित है वह शिष्ट साहित्य में दुर्लभ है. शिष्ट साहित्य और लोक साहित्य के बीच का फासला वस्तुत: दो वर्गों के बीच का फासला है.
हरियाणा में रागनी की परम्परा और जनवादी रागनी की शुरुआत – डा. ओमप्रकाश ग्रेवाल
रागनी की असली जान, ठेठ लोकभाषा के मुहावरों में सीधी-सादी लय अपनाने में और ऐसे मर्म-स्पर्शी कथा प्रसंगों के चुनाव में होती हैं ” जो लोगों के मन में रच-बस गये हों। इन सबके सहारे ही रागनी लोगों की भावनाओं को, उनकी पीड़ाओं तथा दबी हुई अभिलाषाओं को सुगम और सरल ढंग से प्रस्तुत करने में सफल होती हैं।