हरियाणवी ग़ज़ल रिसाल जांगड़ा गहराई तक जावण म्हं बखत तो लागै सै। सच्चाई उप्पर ल्यावण म्हं बखत तो लागै से। करैग जादां तावल जे उलझ घणी ज्यागी, गुत्थी
हरियाणवी ग़ज़ल रिसाल जांगड़ा गहराई तक जावण म्हं बखत तो लागै सै। सच्चाई उप्पर ल्यावण म्हं बखत तो लागै से। करैग जादां तावल जे उलझ घणी ज्यागी, गुत्थी
तीसरे हरियाणा सृजन उत्सव का आगाज हो चुका है। हर वर्ष यह कार्यक्रम फरवरी के महीने में कुरूक्षेत्र में आयोजित किया जाता है। यह एक साहित्यिक-सांस्कृतिक और समाजिक गतिविधियों का कार्यक्रम
हरियाणवी ग़ज़ल बखत पड़े पै रोवै कौण। करी कराई खोवै कौण। मशीन करैं सैं काम फटापट, डळे रात दिन ढोवै कौण। दुनिया हो रह्यी भागम भाग, नींद चैन की सोवै
हरियाणवी ग़ज़ल जिनके दिल मैं भरग्ये खटके, अपणी मंजिल तै वैं भटके। देख बुढापा रोण पड़ग्या, याद आवैं जोबन के लटके। जिनके ऊंचे कर्म नहीं थे, वैं किसमत नै निच्चै
हरियाणवी ग़ज़ल जिम्मेदारी दुखी करै सै। दुनियादारी दुखी करै सै। कारीगर नै ऐन बखत पै, खुंडी आरी दुखी करै सै। पीछा चाहूं सूं छुटवाणा, मन अहंकारी दुखी करै सै। इसतै