राहुल ने लगभग एक सौ उन्नीस या इससे भी अधिक ग्रन्थ लिखे हैं। ये सभी ग्रन्थ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से ‘साम्यवादी विचारधारा’ की दृष्टि से या तो व्याख्या हैं
राहुल ने लगभग एक सौ उन्नीस या इससे भी अधिक ग्रन्थ लिखे हैं। ये सभी ग्रन्थ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से ‘साम्यवादी विचारधारा’ की दृष्टि से या तो व्याख्या हैं
आदिम वर्गपूर्व समाज के निषेध की देहरी पर खड़े बुद्ध केवल इससे उत्पन्न दुख को ही देख सके। अतः बुद्ध के पास केवल यही विकल्प था कि वे आगे न देखकर तेजी से विलुप्त होते आदिम साम्यवादी समाज की ओर देखते जो इतिहास की प्रगति के साथ पूर्णतः लुप्त हो जाने को था। यह अधिक से अधिक एक वास्तविक समस्या का वैचारिक समाधान था। उन्होंने अपना सारा ध्यान इस बात पर केन्द्रित किया कि नये वर्ग विभाजित समाज में ही मानो एक प्रकार के निर्लिप्त जीवों का विकास किया जाय जिसके अन्दर ही स्वतंत्रता, समता और बंधुत्व के विस्तृत मूल्यों को व्यवहार में लाया जा सके। (लेख से)
कुछ लोगों तथा संस्थाओं की ओर से मुझसे राष्ट्रभाषा हिन्दी के सम्बन्ध में कुछ प्रश्न पूछे गये हैं। इनका उत्तर में लिखित रूप में नीचे दे रहा हूं। यूनियन के
“वैसे तो धर्मों में आपस में मतभेद है। एक पूरब मुँह करके पूजा करने का विधान करता है, तो दूसरा पश्चिम की ओर। एक सिर पर कुछ बाल बढ़ाना चाहता
मैं समझता हूं कि वह समय जल्दी आयेगा, जब हमारे साहित्यिकों के लिए स्वयंभू का पढ़ना अनिवार्य हो जायेगां। मैंने अपनी "हिन्दी काव्यधारा" में स्वयंभू के काफी उद्धरण दिये हैं। लेकिन हिन्दी वालों का उचित योग होगा-यदि वे स्वयंभू की "रामायण" और हरिवंश पुराण (कृष्णचरित) को पूरा देखना चाहें। (लेख से)