ऐसे में बालमुकुंद गुप्त को याद करना अच्छा लगता है – सुभाष चंद्र

टोरी जावें लिबरल आवें। भारतवासी खैर मनावेंनहिं कोई लिबरल नहिं कोई टोरी। जो परनाला सो ही मोरी। ये शब्द हैं  – पत्रकार,…