प्रार्थना – रविंद्रनाथ टैगोर

हो चित्त जहाँ भय-शून्य, माथ हो उन्नतहो ज्ञान जहाँ पर मुक्त, खुला यह जग होघर की दीवारें बने न कोई…

दो पंछी – रविंद्रनाथ टैगोर

सोने के पिंजरे में था पिंजरे का पंछी,और वन का पंछी था वन में !जाने कैसे एक बार दोनों का मिलन…

एकला चलो, एकला चलो रे – रवीन्द्रनाथ ठाकुर

यदि तोर डाक सुने केउ न आसे तबे एकला चलो रे, एकला चलो, एकला चलो, एकला चलो रे। यदि केउ…