Post Views: 210 प्रजापति से कवि की तुलना करते हुए किसी ने बहुत ठीक लिखा था- “यथास्मै रोचते विश्वं तथेद परिवर्तते।” कवि को जैसे रुचता है वैसे ही संसार को…
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