कांगड़ा समस्त हिमालयी राज्यों के पर्यावरणवादी समूह यूथ फॉर हिमालय की संभावना संस्थान पालमपुर में आयोजित एक कार्यशाला में हिमाचल प्रदेश आधारित लेखक गगनदीप सिंह की पुस्तक पहाड़ी भाषाओं के
कांगड़ा समस्त हिमालयी राज्यों के पर्यावरणवादी समूह यूथ फॉर हिमालय की संभावना संस्थान पालमपुर में आयोजित एक कार्यशाला में हिमाचल प्रदेश आधारित लेखक गगनदीप सिंह की पुस्तक पहाड़ी भाषाओं के
प्रस्तुत आलेख आचार्य चतुर्वेदी कृत 'हिंदी साहित्य और संवेदना के विकास' के आरंभिक भाग से साभार लिया गया है।भारतीय इतिहास में व्यापक स्तर पर व्याप्त अंतर्विरोधों को समग्रता से समझते हुए ही उसके भाषा-साहित्य को उदारता से आत्मसात किया जा सकता है। आचार्य चतुर्वेदी का यह आलेख जीवन में अंतर्विरोधों को धारण करने के महत्त्व को रेखांकित कर रहा है-
कुछ लोगों तथा संस्थाओं की ओर से मुझसे राष्ट्रभाषा हिन्दी के सम्बन्ध में कुछ प्रश्न पूछे गये हैं। इनका उत्तर में लिखित रूप में नीचे दे रहा हूं। यूनियन के
जन्मदिन पर विशेष प्रेमचंद का भाषा- चिन्तन जितना तार्किक और पुष्ट है उतना किसी भी भारतीय लेखक का नहीं है. ‘साहित्य का उद्देश्य’ नाम की उनकी पुस्तक में भाषा- केन्द्रित
डा.राम मनोहर लोहिया भारतीय स्वतनत्रता सेनानी, प्रखर विचारक, राजनेता और सुप्रसिद्ध समाजवादी थे। डॉ.लोहिया विचारों के बल पर राजनीति का रुख बदलने वाले नेता थे। डॉ.लोहिया ने हमेशा भारत की आधिकारिक भाषा के रूप में अंग्रेजी से अधिक हिंदी को प्राथमिकता दी। उनका विश्वास था कि अंग्रेजी शिक्षित और अशिक्षित जनता के बीच दूरी पैदा करती है। प्रस्तुत है - डॉ. लोहिया के हिन्दी भाषा के प्रति विचार ।