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(16 जनवरी 1899 को भारत मित्र अखबार बालमुकुंद गुप्त के संपादन में प्रकाशित हुआ। इस अंक में दिल्ली से कलकत्ता तक लेख में अपनी यात्रा का वर्णन किया है। इस वृतांत में बालमुकुंद गुप्त की विलक्षण वर्णन क्षमता, संवेदनशीलता और संवेदनशील दृष्टि के दर्शन होते हैं। )

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बालमुकुंद गुप्त ती ख्याति का आधार हैं ‘शिवशंभु के चिट्ठे’। शिवशंभु के चिट्ठे तत्कालीन वायसराय को लिखी गई खुले पत्र हैं। ये शिवशंभु शर्मा के नाम से लिखे थे और

देसहरियाणा सामाजिक-सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का मंच

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हँसी भीतर आनंद का बाहरी चिन्ह (चिह्न) है। जीवन की सबसे प्यारी और उत्तम से उत्तम वस्तु एक बार हँस लेना तथा शरीर के अच्छा रखने की अच्छी से अच्छी दवा एक बार खिलखिला उठना है। पुराने लोग कह गए हैं कि हँसो और पेट फुलाओ।

देसहरियाणा सामाजिक-सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का मंच

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टोरी जावें लिबरल आवें। भारतवासी खैर मनावेंनहिं कोई लिबरल नहिं कोई टोरी। जो परनाला सो ही मोरी। ये शब्द हैं  – पत्रकार, संपादक, कवि, बाल-साहित्यकार, भाषाविद्, निबंधकार के रूप में ख्याति अर्जित

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