(16 जनवरी 1899 को भारत मित्र अखबार बालमुकुंद गुप्त के संपादन में प्रकाशित हुआ। इस अंक में दिल्ली से कलकत्ता तक लेख में अपनी यात्रा का वर्णन किया है। इस वृतांत में बालमुकुंद गुप्त की विलक्षण वर्णन क्षमता, संवेदनशीलता और संवेदनशील दृष्टि के दर्शन होते हैं। )
पीछे मत फेंकिये – बालमुकुंद गुप्त
Post Views: 687 बालमुकुंद गुप्त ती ख्याति का आधार हैं ‘शिवशंभु के चिट्ठे’। शिवशंभु के चिट्ठे तत्कालीन वायसराय को लिखी गई खुले पत्र हैं। ये शिवशंभु शर्मा के नाम से…
हँसी-खुशी – बालमुकुंद गुप्त
हँसी भीतर आनंद का बाहरी चिन्ह (चिह्न) है। जीवन की सबसे प्यारी और उत्तम से उत्तम वस्तु एक बार हँस लेना तथा शरीर के अच्छा रखने की अच्छी से अच्छी दवा एक बार खिलखिला उठना है। पुराने लोग कह गए हैं कि हँसो और पेट फुलाओ।
हिन्दी की उन्नति – बालमुकुंद गुप्त
Post Views: 375 हिन्दी भाषा के संबंध में शुभ केवल इतना ही देखने में आता है कि कुछ लोगों को इसे उन्नत देखने की इच्छा हुई है। किंतु केवल इच्छा…
ऐसे में बालमुकुंद गुप्त को याद करना अच्छा लगता है – सुभाष चंद्र
Post Views: 673 टोरी जावें लिबरल आवें। भारतवासी खैर मनावेंनहिं कोई लिबरल नहिं कोई टोरी। जो परनाला सो ही मोरी। ये शब्द हैं – पत्रकार, संपादक, कवि, बाल-साहित्यकार, भाषाविद्, निबंधकार के रूप…