(आर्य समाज सम्मलेन के वार्षिक अवसर पर 23-24 अप्रैल 1936 को लाहौर में दिया गया मुंशी प्रेम चंद का भाषण )
(आर्य समाज सम्मलेन के वार्षिक अवसर पर 23-24 अप्रैल 1936 को लाहौर में दिया गया मुंशी प्रेम चंद का भाषण )
हिन्दी फारसी भाषा का शब्द है। उसका अर्थ है हिन्द से संबंध रखने वाली, अर्थात् हिन्दुस्तान की भाषा। ब्रजभाषा में फारसी, अरबी, तुर्की आदि भाषाओं के मिलने से हिन्दी की सृष्टि हुई।
वैदिक साहित्य में सभी स्तरों पर भाषा के संबंध में सूक्ष्म चिन्तन किया गया है । ऋग्वेद के कई पूरे सूक्तों में तथा अन्य वेदों, ब्राह्मणों,आरण्यकों,उपनिषदों व वेदांगों में
डा.राम मनोहर लोहिया भारतीय स्वतनत्रता सेनानी, प्रखर विचारक, राजनेता और सुप्रसिद्ध समाजवादी थे। डॉ.लोहिया विचारों के बल पर राजनीति का रुख बदलने वाले नेता थे। डॉ.लोहिया ने हमेशा भारत की आधिकारिक भाषा के रूप में अंग्रेजी से अधिक हिंदी को प्राथमिकता दी। उनका विश्वास था कि अंग्रेजी शिक्षित और अशिक्षित जनता के बीच दूरी पैदा करती है। प्रस्तुत है - डॉ. लोहिया के हिन्दी भाषा के प्रति विचार ।