बाल कविता चिड़िया मेरे घर की छत पर रोज फुदकती है रुक-रुक अपनी भाषा में जाने क्या बोला करती है टुक-टुक। उसकी बोली को सुन-सुनकर नन्हें चूजे आ जाते आंगन
बाल कविता चिड़िया मेरे घर की छत पर रोज फुदकती है रुक-रुक अपनी भाषा में जाने क्या बोला करती है टुक-टुक। उसकी बोली को सुन-सुनकर नन्हें चूजे आ जाते आंगन
बाल कविता मैं हूं गैस गुबारा भैया ऊंची मेरी उड़ान नदियां-नाले-पर्वत घूमूं फिर भी नहीं थकान बस्ती-जंगल बाग-बगीचे या हो खेत-खलिहान रुकता नहीं कहीं भी पलभर देखूं सकल जहान उड़ते-उड़ते