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फैज का रचनाकार अपने जीवन अनुभवों की पूंजी से रचना करता है, इसीलिए वह लाऊड होकर भी विश्वसनीय होती है। अपने युग के अन्तर्विरोधों, सत्ता की क्रूरताओं-अत्याचारों और मेहनतकश के संघर्षों-आन्दोलनों को अभिव्यक्त करने का संकल्प लिया और उस दायित्व को बखूबी निभाया। फैज शायरी में अपने निजी दुख-दर्दों-पीड़ाओं का रोना नहीं रोते, बल्कि अपनी तकलीफों और जमाने की तकलीफों को एकमएक कर देते हैं। अपने अनुभवों का विस्तार करके उनको आमजन की तकलीफों से गूंथ देने से फैज की कविताएं सामूहिक गान और आह्वान गीत की शक्ल अख्तियार करती जाती हैं और पाठक पर गहरा असर करती है। (लेख से)

देसहरियाणा सामाजिक-सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का मंच

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https://www.youtube.com/watch?v=bK5JmUmB7i0 ‘भावें मूहों ना कहिये, पर व्हिच्चों व्हिच्ची खोए तुसी वी ओ, खोए असी वी आँ इन्हाँ अज़ादियाँ हत्थों बरबाद होणा, होए तुसी वी ओ, होए असी वी आँ कुछ

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