देखे मर्द नकारे हों सैं गरज-गरज के प्यारे हों सैं – पं. लख्मीचंद

बात सही है कि लोक कवि लोक बुद्धिमता, प्रवृतियों और बौद्धिक-नैतिक रुझानों का अतिक्रमण नहीं कर पाते। लेकिन लोक प्रचलित…