साखी – दुविधा2 जाके मन बसे, दयावन्त जीव नाही। कबीर त्यागो ताहि को, भूलि देखो जिन्ह नाहीं।।टेक – पंडित वाद वदे सो झूठा राम कहे जगत गति होवे तो खांड3
साखी – दुविधा2 जाके मन बसे, दयावन्त जीव नाही। कबीर त्यागो ताहि को, भूलि देखो जिन्ह नाहीं।।टेक – पंडित वाद वदे सो झूठा राम कहे जगत गति होवे तो खांड3