कहानी के भविष्य की चिंता राजेन्द्र यादव को भी है और मुझे भी। लेकिन जैसा कि लेव तोल्सतोय ने अन्ना करेनिना के आरंभ में कहा है, सभी सुखी परिवार एक जैसे हैं लेकिन हर दुखी परिवार अपने-अपने ढंग से दुखी है।
भारतेन्दु और भारत की उन्नति – डॉ. नामवर सिंह
सम्मान का भाव रामविलास जी के प्रति हममें से प्रत्येक के मन में है, पर कहीं-न-कहीं उनकी व्याख्या के प्रति गंभीर संदेश भी है। मसलन सुधीरचन्द्र को भारतेन्दु में सर्वत्र एक प्रकार का दुचित्तापन दिखाई पड़ता है: राजभक्ति और देशभक्ति को लेकर भी, हिंदू-मुस्लिम भेदभाव के सवाल पर भी, यहां तक कि’ स्वदेशी’ के मामले में भी उनके आचार-विचार में फांक दिखती है।
राष्ट्र का स्वरूप – वासुदेव शरण अग्रवाल
Post Views: 558 भूमि, भूमि पर बसने वाला जन और जन की संस्कृति इन तीनों के सम्मिलन से राष्ट्र का स्वरूप बनता है। भूमि का निर्माण देवों ने किया है,…
नेता नहीं, नागरिक चाहिए – रामधारी सिंह दिनकर
नेता का पद आराम की जगह है, इससे बढ़कर दूसरा भ्रम भी नहीं हो सकता। अंग्रेजी में एक कहावत है कि किरीट पहननेवाला मस्तक बराबर चक्कर में रहता है। तब जो आदमी मेहनत और धीरज से भागता है, उससे यह कैसे उम्मीद की जाए की वह आठ पहर के इस चक्कर को बर्दाश्त करेगा और जिनमें धीरज नहीं, सबसे अधिक वे ही इस चक्कर को अपने माथे पर लेने को क्यों बेकरार हैं? दुनिया के सामने संगठनों से निकली हुई तैयार चीजें ही आती हैं, नेताओं के हस्ताक्षरों से भूषित कागज के पुर्जे नहीं। और कागज के इन निर्जीव पुों को लेकर दुनिया करेगी भी क्या?
भीष्म को क्षमा नहीं किया गया – हजारी प्रसाद द्विवेदी
किस प्रकार पुराने इतिहास से वह वर्तमान समस्या के सही स्वरूप का उद्घाटन करते हैं और उसका विकासक्रम समझा देते है, वह चकित कर देता है। हर प्रश्न के तह में जाने की उनकी पद्धति आधुनिक युग में भी उपयोगी है।
क्रोध – रामचन्द्र शुक्ल
Post Views: 70 क्रोध दु:ख के चेतन कारण से साक्षात्कार या अनुमन से उत्पन्न होता है। साक्षात्कार के समय दु:ख और उसके कारण के संबंध का परिज्ञान आवश्यक है। तीन…
निराला : रचना सौष्ठव
इस दृश्य के अनुरूप रचना कल्याणकारिणी होनी चाहिए। फूलों की अनेक सुगन्धों की तरह कल्याण के भी रूप हैं। साहित्यिक को यहाँ देश और काल का उत्तम निरूपण कर लेना चाहिए। समष्टि की एक माँग होती है। वह एक समूह की माँग से बड़ी है। साहित्यिक यदि किसी समूह के अनुसार चलता है, तो वह उच्चता नहीं प्राप्त कर सकता, जो समष्टि को लेकर चलता है।
एक कुत्ता और एक मैना- हजारी प्रसाद द्विवेदी
एक दिन वह मैना उड़ गई। सायंकाल कवि ने उसे नहीं देखा। जब वह अकेले आया करती है उस डाल के कोने में; जब झींगुर अन्धकार में झनकारता रहता है, जब हवा में बाँस के पत्ते झरझराते रहते हैं, पेड़ों की फाँक से पुकारा करता है नींद तोड़नेवाला सन्ध्यातारा! कितना करुण है, उसका गायब हो जाना! (लेख से)
मनुष्य ही साहित्य का लक्ष्य है- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
इस देश में हिन्दू हैं, मुसलमान हैं, स्पृश्य हैं, अस्पृश्य हैं, संस्कृत हैं, फारसी हैं- विरोधों और संघर्षों की विराट वाहिनी है; पर सबके ऊपर मनुष्य है- विरोधों को दिन रात याद करते रहने की अपेक्षा अपनी शक्ति का संबल लेकर उसकी सेवा में जुट जाना अच्छा है। जो भी भाषा आपके पास है, उससे बस मनुष्य को ऊपर उठाने का काम शुरू कर दीजिए। आपका उद्देश्य आपकी भाषा बना देगा। (निबंध से)
सौंदर्य बोध और शिवत्व बोध – अज्ञेय
अज्ञेय हिंदी साहित्य में एक कवि, लेखक तथा निबन्धकार के रूप में जाने जाते हैं. अज्ञेय अपनी रचनाओं में व्यक्तिस्वतंत्रता के पक्षधर थे. उनका मानना था कि मनुष्य समाज में रहते हुए पूर्ण रूप से स्वतंत्र है. ‘सौंदर्य बोध और शिवत्व बोध’ नामक अपने इस निबन्ध में उन्होंने कला में सौदर्य तत्व तथा शिवत्व यानि मंगलकारी होने के भाव को भिन्न भिन्न माना है जबकि ‘संस्कृति और सौन्दर्य’ नामक अपने निबन्ध में नामवर सिंह शिवत्व- बोध सहित रचना को ही सुंदर कहते हैं. विद्यार्थियों के लिए यह शोध का विषय हो सकता है.